जब महादेव से हुआ हनुमान जी का युद्ध, जानिए क्या रहा परिणाम

जिस तरह लव -कुश ने  प्रभु राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को बंदी बन लिया था, उसी प्रकार इस यज्ञ का घोड़ा जब देवपुर पहुंचा तो शिवभक्त राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने उसे बंदी बना लिया

अब देवपुर और अयोध्या की सेना में युद्ध तो होना ही था, वीरमणि ने सुना कि श्रीराम के अनुज शत्रुघ्न की वाहिनी युद्ध के लिए बढ़ती चली आ रही है, तो उसने सशस्त्र सेना तैयार करने के लिए अपने पराक्रमी सेनापति रिपुवार को आदेश दे दिया

भीषण युद्ध हुआ जिसमें हनुमानजी ने सभी को पराजित कर दिया, अंत में वीरमणि को हनुमानजी ने मूर्च्छित कर दिया। शिव‍भक्ति वीरमणि को शिवजी ने वरदान दिया था कि जब‍ भी संकट आएगा तो मैं तुम्हारी सहायता करूंगा

भगवान अपने गणों के साथ युद्ध के मैदान में पहुंच गए, वीरभद्र ने शत्रुघ्न के पुत्र पुष्कल का सिर काट दिया और शिवजी ने शत्रुघ्न को घायल कर दिया

फिर हनुमानजी सेना का मनोबल बढ़ाते हुए गर्जना करके आगे बढे और शिवजी के सामने जाकर खड़े हो गए, फिर दोनों में भयंकर और प्रलयंकारी युद्ध हुआ

चूंकि हनुमानजी रुद्रावतार थे और उन्हें सभी देवी देवताओं ने वरदान दे रखा था कि कोई अस्त्र शस्त्र से तुम बंध नहीं सकते हो और ना ही पराजित हो सकते हो

इस कारण भगवान शंकर और हनुमानजी में प्रलंयंकारी युद्ध हुआ। दोनों ओर से हर तरह के दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया जाने लगा

युद्ध भयानक से भयानक होता जा रहा था, यह देखकर भगवान राम वहां प्रकट हुए और श्रीरामजी ने हनुमानजी को समझाया कि आप किससे युद्ध कर रहे हो

शिव ही राम है और राम ही शिव है,यह सुनकर हनुमानजी को शिव में ही राम का रूप नजर आने लगा, यह देखकर वे अपना युद्ध रोककर भगवान शिव और राम के आगे हाथ जोड़कर खड़े हो गए