Agneepath Scheme: केंद्र की अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार के दिन सवाल किया कि उनके किस अधिकार का उल्लंघन हुआ है और कहा कि यह स्वैच्छिक है, जिन लोगों को इससे कोई परेशानी है, उन्हें सशस्त्र बलों में शामिल नहीं होना चाहिए।
हाईकोर्ट का कहना है कि भर्ती के लिए अग्निपथ योजना थलसेना, नौसेना और वायुसेना के विशेषज्ञों ने बनाई है और न्यायाधीश सैन्य विशेषज्ञ नहीं हैं। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि योजना में क्या गलत है? यह अनिवार्य नहीं है…स्पष्ट कहूं तो हम सैन्य विशेषज्ञ नहीं हैं। आप (याचिकाकर्ता) और मैं विशेषज्ञ नहीं हैं। इस योजना को थलसेना, नौसेना और वायु सेना के विशेषज्ञों के बड़े प्रयासों के बाद तैयार किया गया है।
पीठ ने कहा कि सरकार ने एक विशेष नीति तैयार की है। आपको यह साबित करने की जरूरत है कि अधिकार छीन लिया गया है। क्या हम यह तय करने वाले व्यक्ति हैं कि इसे चार साल या पांच साल या फिर सात साल किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट द्वारा केंद्र की अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की जा रही है।
बता दें कि सशस्त्र बलों में युवाओं की भर्ती के लिए अग्निपथ योजना 14 जून को शुरू की गई। योजना के नियमों के बारे में पात करें तो, साढ़े 17 से 21 वर्ष की आयु के लोग आवेदन करने के पात्र हैं और उन्हें चार साल के कार्यकाल के लिए शामिल किया जाएगा। इसे बाद में सरकार बदल दिया और ऊपरी आयु सीमा को बढ़ाकर 23 कर दिया।
याचिकाकर्ताओं में से एक हर्ष अजय सिंह की ओर से पेश अधिवक्ता कुमुद लता दास का कहना है कि योजना में भर्ती होने के बाद अग्निवीरों के लिए 48 लाख रुपये का जीवन बीमा होगा, जो पहले के प्रावधान की मुकाबले में बहुत कम है। उन्होंने कहा, अगर सेवा की अवधि पांच साल के लिए होती, तो वे ‘ग्रेच्युटी’ के हकदार होते। वकील ने कहा कि चार साल के सेवाकाल के बाद, महज 25% अग्निवीरों को सशस्त्र बल में बनाए रखने पर विचार होगा और बाकी 75% के लिए कोई योजना नहीं है।
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