इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
Consolidation Of Municipal Corporation Of Delhi : प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने संसद में तीनों नगर निगमों के एकीकरण का विधेयक प्रस्तुत होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि गत काफी दिनों से दिल्ली की बेहतरी के लिए निगम कर्मचारी, पदाधिकारी एवं नेता निगम के एकीकरण की मांग कर रहे थे। इसके बाद लिए गए इस फैसले से निगम वित्तीय रुप से मजबूत होगा।
सदन में भाजपा विधायक विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि कांग्रेस के पास भी एमसीडी के विभाजन का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। आम आदमी पार्टी ने एमसीडी को पंगु बनाने के लिए फंड रोक दिया। ऐसे में एमसीडी को एकीकृत करने के लिए केंद्र का यह कदम स्वागत योग्य है।
विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने शुक्रवार को दिल्ली के तीन नगर निगमों को फिर से एक करने संबंधी दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2022 को लोकसभा में पेश किया। विपक्ष ने बिल को जहां असांविधानिक और संघीय ढांचे पर प्रहार बताया तो वहीं सरकार ने इसे दिल्ली के लोगों के हित में लिया गया फैसला बताया।
प्रश्नकाल के बाद जैसे ही केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बिल पेश करने की प्रक्रिया शुरू की, उसी समय कांग्रेस, आरएसपी और बसपा समेत विपक्षी सांसद हंगामा करने लगे। विपक्षी की आपत्तियों के बावजूद राय ने कहा कि बिल को पेश करना कहीं से भी देश के संविधान की मूल भावना का उल्लंघन नहीं है और न ही यह संघीय ढांचे के खिलाफ है। देश का संविधान केंद्र को कानून बनाने, उसमें बदलाव करने का अधिकार देता है। (Consolidation Of Municipal Corporation Of Delhi)
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 239(ए)(ए) के तहत दिल्ली से जुड़े इस कानून में संशोधन करने में सदन सक्षम है। राय ने आगे कहा कि दिल्ली में तीन समवर्ती नगर निगमों के सृजन का मुख्य उद्देश्य जनता को प्रभावी नागरिक सेवाएं उपलब्ध कराना था लेकिन गत 10 वर्षों का अनुभव यह दिखाता है कि ऐसा नहीं हुआ। सरकार ने सही मंशा और दिल्ली के लोगों की भलाई के लिए यह फैसला लिया है।
बिल पेश किए जाने का विरोध करते हुए आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने कहा कि यह बिल दिल्ली सरकार और दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र का हनन करता है। उन्होंने कहा कि सदस्यों को बिल के मसौदे का अध्ययन करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला और इसका मसौदा जटिल है। वहीं कांग्रेस के गौरव गोगोई ने कहा कि यह बिल संघीय ढांचे पर एक कड़ा प्रहार है। इसे सदन में लाने से पहले केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों और अन्य हितधारकों से विचार-विमर्श करना चाहिए था। जो नहीं किया गया। (Consolidation Of Municipal Corporation Of Delhi)
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अपनी विफलताओं को छिपाने के प्रयास में जल्दबाजी में यह विधेयक लाई है। कांग्रेस के ही मनीष तिवारी ने कहा कि हम इस विधेयक को पेश किये जाने का विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह इस सदन की विधायी दक्षता एवं दायरे से बाहर का विषय है। इस बिल को सदन में पेश नहीं किया जाना चाहिए।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में बताया गया है कि वर्ष 2011 में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र की विधानसभा द्वारा दिल्ली नगर निगम संशोधन अधिनियम 2011 द्वारा उक्त अधिनियम को संशोधित किया गया था जिससे उक्त निगम का तीन पृथक निगमों में विभाजन हो गया। दिल्ली नगर निगम के तीन भागों में विभाजन करने का मुख्य उद्देश्य जनता को अधिक प्रभावी नागरिक सेवाएं उपलब्ध कराना था।
दिल्ली में विभिन्न केंद्रों में नगर पालिकाओं का सृजन करना था, फिर भी दिल्ली नगर निगम का तीन भागों में विभाजन राज्य क्षेत्रीय प्रभागों और राजस्व सृजन की संभाव्यता के अर्थ में असमान था। इसमें यह बताया गया है कि समय के साथ तीनों नगर निगमों की वित्तीय कठिनाइयों में वृद्धि हुई है। जिससे वे अपने कर्मचारियों को वेतन और सेवानिवृत्ति फायदे प्रदान करने में अक्षम हो गए। (Consolidation Of Municipal Corporation Of Delhi)
वेतन और सेवानिवृत्ति फायदे प्रदान करने में देरी का परिणाम कर्मचारियों द्वारा निरंतर हड़ताल के रूप में सामने आया। जिससे न केवल नागरिक सेवाएं प्रभावित हुई बल्कि इससे सफाई और स्वच्छता से संबंधित समस्याएं भी खड़ी हो गई। इसके साथ ही तीन नगर निगमों की ऐसी वित्तीय कठिनाइयों के परिणाम स्वरूप उनकी संविदा संबंधी और कानूनी बाध्यताओं को पूरा करने में अनियमित विलंब हुआ। जिससे दिल्ली में नागरिक सेवाओं को बनाए रखने में गंभीर समस्याएं देखी गई।
केंद्र ने तीनों निगमों के एकीकरण के बाद अस्तित्व में आने वाले दिल्ली नगर निगम से दिल्ली सरकार को पूरी तरह से दूर करने का निर्णय लिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को लोकसभा में पेश दिल्ली नगर निगम अधिनियम-1957 में संशोधन करने संबंधी दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक-2022 में दिल्ली सरकार यानी सरकार के स्थान पर केंद्र सरकार कर दिया। संसद के दोनों सदनों में यह विधेयक पास होने के बाद दिल्ली नगर निगम के कामकाज से दिल्ली सरकार का कोई वास्ता नहीं रहेगा।
दिल्ली नगर निगम सीधे तौर पर अब केंद्र के अधीन आ जाएगा। गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार से दिल्ली नगर निगम अधिनियम की 17 धाराओं का अधिकार भी लेने का निर्णय लिया है। विशेषज्ञों ने बताया कि दिल्ली नगर निगम का आयुक्त नियुक्त करने में दिल्ली सरकार की कोई भूमिका नहीं रहेगी। इसके अलावा दिल्ली सरकार न तो दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों को तलब कर सकेगी और न ही निगम के कामकाज के मामले में निर्देश दे सकेगी। निगम दिल्ली सरकार से पूरी तरह स्वतंत्र होगी। (Consolidation Of Municipal Corporation Of Delhi)
दूसरी ओर दिल्ली नगर निगम को अपने गठन और कामकाज से संबंधित एक भी फाइल को दिल्ली सरकार के पास नहीं भेजनी पड़ेगी। नगर निगम की इस तरह की फाइलों को उपराज्यपाल स्वीकृति देंगे। इसके अलावा नगर निगम को अपनी बैठकों का एजेंडा भी दिल्ली सरकार को नहीं देना होगा।
निगम चुनाव नहीं होने तक भी दिल्ली सरकार प्रत्यक्ष ही नहीं, अप्रत्यक्ष रूप से भी कोई दखलदांजी नहीं कर सकेंगी। वहीं केंद्र सरकार नगर निगम चुनाव नहीं होने तक इसकी जिम्मेदारी का कमान किसी वरिष्ठ आईएएस अधिकारी या फिर सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी को नियुक्त कर करेगी। जो निगम के कार्य को सुचारू रूप से चलाएगा (Consolidation Of Municipal Corporation Of Delhi)