इंडिया न्यूज, नई दिल्ली : ससुराल का हर सदस्य दहेज प्रताड़ना के लिए आरोपी नहीं हो सकता। यदि शिकायतकर्ता आरोप लगाती है तो इसके लिए उसे सबूत भी देने होंगे, जो संबंधित परिवार के सदस्य की प्रताड़ना को साबित करता हो। अदालत ने कहा कि हर छोटी कहासुनी को प्रताड़ना नहीं कहा जा सकता। अदालत ने यह अहम टिप्पणी एक महिला के ससुर को दहेज प्रताड़ना व भरोसे के आपराधिक हनन के आरोप से मुक्त करते हुए की।
गौरतलब है कि दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजीव कुमार की अदालत ने अपने फैसले में कहा कि दहेज प्रताड़ना कानून इसलिए बनाया गया ताकि महिला को ससुराल में प्रताड़ना से सुरक्षा दिलाया जा सके, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस कानून का तेजी से दुरुपयोग होने लगा है। खुद देश के उच्च न्यायालय समय-समय पर इस बात का उल्लेख अपने निर्णयों में कर चुका है कि शादी के बाद छोटी-मोटी नोंकझोंक में न सिर्फ ससुराल पक्ष के प्रत्येक सदस्य, बल्कि दूसरे रिश्तेदारों को भी दहेज प्रताड़ना के झूठे मामलों में फंसा दिया जाता है। ऐसे में लोग साक्ष्यों के अभाव में बरी तो हो जाते है लेकिन उन्हें जो मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना सहनी पड़ती है। जिसका कोई भरपाई नहीं है।
अदालत ने शिकायतकर्ता महिला की सास पर दहेज प्रताड़ना और भरोसे के आपराधिक हनन के तहत आरोप तय किए हैं। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता महिला की सास पर लगे आरोपों को लेकर अभियोजन पक्ष के पास प्रथमदृष्टया साक्ष्य मौजूद हैं। शिकायतकर्ता ने प्रताड़ना का समय, तरीका और निर्धारित तारीख का उल्लेख किया है। ऐसे में सास पर आरोप बनते हैं, जबकि ससुर के लिए सिर्फ यह कह देना पर्याप्त नहीं है कि शिकायतकर्ता ने उनसे पति की शिकायत की और उन्होंने यह कह दिया था कि उनका बेटा जो कर रहा है वह सही है।
चांदनी चौक इलाके में रहने वाली महिला ने चार साल पहले 2018 में पति व सास-ससुर के खिलाफ दहेज प्रताड़ना व भरोसे के आपराधिक हनन का मुकदमा दर्ज किया था। निचली अदालत ने आरोप तय कर दिए गए थे। निचली अदालत के इस निर्णय को सास-ससुर की ओर से सत्र अदालत में चुनौती दी गई थी। सत्र अदालत ने निचली अदालत के निर्णय में बदलाव कर दिया है।
सत्र अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के 8 फरवरी 2022 के कहकसन कौसर उर्फ सोनम एवं अन्य बनाम बिहार राज्य से संबंधित एक मामले के अलावा छह और निर्णयों को अपने फैसले का आधार बनाया। सत्र अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जाहिर करते हुए स्पष्ट तौर पर अपने फैसले में कहा था कि दहेज प्रताड़ना कानून का दुरुपयोग हो रहा है। पति के रिश्तेदारों को झूठे दहेज प्रताड़ना के मामलों में फंसाने का चलन सा बन गया है। ऐसे में बिना साक्ष्य के किसी तरह का कोई आदेश देना अनुचित है।
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