इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली :
राजधानी दिल्ली की एक अदालत ने बीते अप्रैल महीने में जहांगीरपुरी में हुई हिंसा को दिल्ली पुलिस की नाकामयाबी बताया है। अदालत का मानना है कि हनुमान जन्मोत्सव के दौरान अनपेक्षित तरीके से निकाले गए जुलूस को थमाने में दिल्ली की पुलिस तरफ से विफल रही है, इसी कारण से इलाके में सांप्रदायिक झड़पें देखने को मिली है।
राजधानी अदालत ने इस मामले से जुड़ी जमानत याचिकाओं को खारिज करके कहा है कि हमें ऐसा लगता है, इस मुद्दे को राजधानी पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा नजरअदांज कर दिया है।
साथ ही साथ यह भी कहा कि राजधानी पुलिस कर्मियों की मिलीभगत से यह झड़पें भी देखने को मिली हैं, इस मामले की तह तक जांच की जानी चाहिए। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गगनदीप सिंह भी कहते है कि साथी अधिकारियों को अपना दायित्व निभाने की बहुत जरूरत है, ताकि आने वाले समय में ऐसी कोई घटना न घटित हो।
अदालत ने निर्देश जारी किए है कि 7 मई को पारित आदेश के प्रति पुलिस आयुक्त को सूचना दी जाए और फिर से ऐसा न हो और अनुपालन के लिए भेजी जाए।
न्यायाधीश का कहना है कि राज्य की ओर से साफ बता दिया गया है कि जिस जुलूस के दौरान दंगे हुए, वह पुलिस की अनुमति के बिना किया गये थे। अदालत कहते है कि बीते 16 अप्रैल को हुई घटना का क्रम और घटना को थामने और कानून व्यवस्था को बनाए रखने में स्थानीय सरकार की भूमिका को देखने की आवश्यकता है।
एफआईआर को देखने के बाद पता चलता है कि जहांगीरपुरी थाने के लोकल कर्मचारी, अधिकारी अवैध जुलूस को रोकने की जगह उसके साथ ही चल रहे थे। न्यायाधीश द्वारा कहा गया है कि ऐसा अभास होता है कि लोकल पुलिस द्वारा शुरू से ही जुलूस को रोकने और भीड़ को अलग करने के बजाय पूरे रास्ते में उनका साथ देते चले गए, जिससे बाद में दोनों समुदायों के बीच दुर्भाग्यपूर्ण दंगे हुए।