India News(इंडिया न्यूज़), Delhi: दिल्ली हाई कोर्ट ने आईआईटी छात्रावास में मृत पाए गए दो छात्रों के परिजनों की याचिका पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के सदस्यों को महत्वपूर्ण सुझाव दिए। आईआईटी सदस्यों को छात्रों को सलाह देने और प्रेरित करने का सुझाव देते हुए अदालत ने कहा कि अच्छे अंक हासिल करना और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना महत्वपूर्ण है लेकिन यह जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बात नहीं है।
अदालत ने कहा कि कॉलेजों के प्रोफेशनल और कम्पटीटर माहौल में हर दिन चुनौतियों का सामना करने वाले युवाओं के दिमाग में इसे स्थापित करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका उन्हें एक ही परिसर में पढ़ाना है। दो छात्रों के रिश्तेदारों द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया कि वास्तविक तथ्यों को छिपाने के लिए फैकल्टी सदस्यों द्वारा एक साजिश के तहत उनके बेटों की हत्या की गई और इसे आत्महत्या के रूप में गलत तरीके से चित्रित किया गया।
परिजनों ने आरोप लगाया कि उनके बेटों को फैकल्टी सदस्यों द्वारा जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा क्योंकि वे एससी-एसटी समुदाय से थे। उन्होंने मांग की कि उनके बेटों की मौत से जुड़े मामलों की जांच केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) से कराई जाए। उन्होंने आईआईटी दिल्ली के परिसर में हो रहे जाति आधारित अत्याचारों की गहन और निष्पक्ष जांच की भी मांग की।
कोर्ट ने रिश्तेदार की याचिका खारिज करते हुए कहा कि भावना या सहानुभूति के आधार पर ऐसा आदेश जारी नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि जांच से पता चला कि मृतक छात्रों को जाति-आधारित भेदभाव का सामना करना पड़ा था। किसी अन्य छात्र ने परिसर में होने वाले समान भेदभाव की सूचना नहीं दी है और याचिका में लगाए गए आरोपों की पुष्टि या वेरीफिकेशन नहीं किया जा सका है।