इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
Delhi High Court : कश्मीरी प्रवासी होने के आधार पर सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद भी सरकारी आवंटन जारी रखने की मांग वाली अपील पर राहत देने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इन्कार कर दिया। एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ ने अपील याचिका खारिज कर दी। पीठ ने स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्त होने वाले कश्मीरी प्रवासियों को सरकारी आवास बनाए रखने का अधिकार नहीं है।
हालांकि, अपीलकर्ता को 31 मई 2022 तक आवास पर बने रहने की सशर्त अनुमति दी। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता को एक सप्ताह में न्यायालय के समक्ष एक वचन पत्र दाखिल करना होगा कि वे इसके बाद स्वेच्छा से आवास छोड़ देंगे।
31 मार्च 2020 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके अपीलकर्ता सुनील कुमार धर ने 16 फरवरी को न्यायमूर्ति वी. कामेश्वर राव की एकल पीठ द्वारा सुनाए गए निर्णय को चुनौती दी थी। एकल पीठ ने सरकारी आवास को खाली करने से जुड़े केंद्र सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली तीन सेवानिवृत्त अधिकारियों सुशील कुमार धर, सुरेंद्र कुमार रैना, प्रिदमन किरशन कौल की याचिका को खारिज कर दिया था।
अपील याचिका पर दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि हम इससे सहमत नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि सरकारी अधिकारी आपके साथ कोई भेदभाव कर रहे हैं। अगर हम इसकी अनुमति देते हैं, तो सरकारी आवास के लिए कतार में इंतजार कर रहे अन्य लोगों का क्या होगा? सरकार के पास असीमित आवास नहीं है। धर ने अधिवक्ता मनोज वी जार्ज के माध्यम से दायर अपील याचिका में दावा किया कि सरकार ने 28 मार्च 2017 को एक योजना शुरू की थी। इसके तहत जम्मू और कश्मीर राज्य से संबंधित केंद्र सरकार के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को वैकल्पिक आवास प्रदान करने का प्रविधान किया गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि श्रीनगर की स्थिति उनके वापस लौटने के अनुकूल नहीं है। वहां उनके परिवार के सदस्यों की जान का खतरा है। इतना ही नहीं राज्य सरकार उन्हें कश्मीर में स्थित गांव में दोबारा स्थापित करने के लिए उचित सुरक्षा देने में असमर्थ है। उन्हें लगता है कि वे दिल्ली में सुरक्षित हैं। एक प्रवासी कश्मीरी पंडित होने के नाते वे वापस वहां जाने में असमर्थ हैं।
वहीं, एकल पीठ ने उन्हें 31 मार्च 2022 या इससे पहले आवंटित सरकारी आवास खाली करने का निर्देश दिया था। पीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता 28 मार्च 2017 के कार्यालय ज्ञापन के तहत अपात्र हैं और ऐसे में वे सरकारी आवास के प्रतिधारण के हकदार नहीं हैं। पीठ ने स्पष्ट किया था कि केंद्र सरकार के उन कर्मचारियों के लिए योजना प्रासंगिक समय पर लागू थी जोकि उस समय पर श्रीनगर में तैनात थे और एक नवंबर 1989 के बाद सुरक्षा के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा श्रीनगर से दिल्ली स्थानांतरित कर दिए गए थे।
पीठ ने कहा कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने सात अक्टूबर 2021 के अपने फैसले के माध्यम से उक्त कार्यालय ज्ञापन को रद कर दिया था। याचिकाकर्ता सुशील कुमार धर, सुरेंद्र कुमार रैना, प्रिदमन किरशन कौल ने दो दिसंबर 2021, छह जनवरी 2021 और आठ मार्च 2021 को केंद्र सरकार द्वारा जारी आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने कश्मीरी प्रवासी होने का दावा करते हुए केंद्र सरकार को उन्हें सरकारी आवास के आवंटन को नियमित करने और तीन साल के लिए सामान्य लाइसेंस शुल्क लेने का निर्देश देने की मांग की थी। (Delhi High Court)
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