India News Delhi (इंडिया न्यूज़), Delhi High Court: दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने पिछले 14 सालों से अधर में लटके हुए एक स्कूल के पुनर्निर्माण कार्य को आरंभ करने के लिए हाईकोर्ट के दरवाजे पर कड़ी मांग की है। इस स्कूल का निर्माण कार्य नहीं हो पा रहा है क्योंकि इसकी दीवार और उसके बराबर बने यूसुफ कतर मकबरे की दीवार में अंतर्विरोध है। हाईकोर्ट ने क्षेत्रीय बच्चों की शिक्षा के मामले में केंद्र को छह सप्ताह के अंदर निर्णय लेने का आदेश दिया है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति की बेंच ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (AMI) और केंद्र सरकार को अक्टूबर 2020 और अक्टूबर 2021 में स्कूल के निर्माण को लेकर दिए गए पत्र के संबंध में त्वरित निर्णय लेने के लिए कहा है। बेंच ने साफ किया है कि इस निर्णय के दौरान सभी पक्षों के हित का ध्यान रखा जाएगा। इसमें यह भी कहा गया है कि यह फैसला सिर्फ एक पुरानी इमारत के नवीनीकरण के मामले के रूप में है, जो कि पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है। बच्चों की शिक्षा को भी महत्वपूर्ण माना गया है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
याचिकाकर्ताओं ने यह दलील दी कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का कहना था कि स्कूल और मकबरे की दीवार एक है, जिसके कारण निर्माण कार्य रुका था। मकबरा पुरातत्व विभाग के अंतर्गत होने के कारण यहां निर्माण कार्य प्रतिबंधित है। याचिकाकर्ताओं ने इसका विरोध किया और कहा कि AMI का यह तर्क उचित नहीं है, क्योंकि कानून के हिसाब से 16 जून 1992 से पहले बनी इमारतों और ढांचों पर एएसआई का यह नियम लागू नहीं होता है। निगम का यह स्कूल इस तारीख से बहुत पहले का बना हुआ है, और यहां पहले से ही बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ रहे थे।
खिड़की गांव निवासी वेलफेयर एसोसिएशन ने एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि उनके बच्चे पहले गांव के सरकारी स्कूल में बहुत आराम से पढ़ाई करते थे। लेकिन पुरातत्व विभाग और केंद्र सरकार की जिद के कारण, अब उनके बच्चों को दूरी तय करनी पड़ रही है। इससे गांव के निवासियों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। हाईकोर्ट से इस मामले को समझने और उचित आदेश देने की अपेक्षा की जा रही है।
हम आपको बता दें कि स्कूल याचिकाकर्ताओं ने बताया कि 2010 में इस स्कूल को नए सिरे से बनवाने के लिए MCD को आवेदन दिया गया था, क्योंकि इसकी इमारत जर्जर हो गई थी। एमसीडी ने इसे स्वीकार किया था और नींव भी वर्ष 2012 में रख दी गई थी, लेकिन काम आगे नहीं बढ़ा। उस समय यहां पढ़ रहे तीन सौ से अधिक बच्चों को दूसरे स्कूल में स्थानांतरित किया गया था। इसके परिणामस्वरूप, पिछले 14 सालों से गांव के बच्चे दूर के स्कूल में जाने को मजबूर हैं।
Read More: