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Delhi : जामा मस्जिद को मिलेगा नया शाही इमाम, कैसे होती है ताजपोशी, जानें इतिहास

• LAST UPDATED : February 21, 2024

India News(इंडिया न्यूज़),Delhi : राजधानी दिल्ली स्थित ऐतिहासिक मस्जिद जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी अपने बेटे और नायब इमाम सैयद उसामा शाबान बुखारी को अपना नया उत्तराधिकारी बनाने जा रहे हैं, जिसे इस्लाम की बोलचाल में जानशीन कहते हैं। सामने आई जानकारी के अनुसार, आगामी 25 फरवरी को सैयद अहमद बुखारी इसका औपचारिक ऐलान करेंगे। इस दिन उसामा शाबान बुखारी की इमाम के तौर पर दस्तराबंदी भी की जाएगी। बता दें, दस्तराबंदी एक तरह की रस्म है, जिसमें कोई बुजुर्ग या रिलिजन गुरु व्यक्ति के सिर पर पगड़ी बांधता है।

ऐसे चुना जाता है जामा मस्जिद का इमाम

पुराने नियमानुसार जामा मस्जिद के इमाम को अपने जीते जी अपने नए उत्तराधिकारी के नाम की घोषणा करनी होती है। बता दें, जामा मस्जिद के शाही इमाम बनाए जाने की प्रक्रिया इमाम के परिवार से ही पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। ऐसे में पिता के बाद उसका बेटा शाही इमाम बनता है। सामने आई जानकारी के अनुसार, वर्ष 1650 के दशक में शाहजहां द्वारा जामा मस्जिद के लिए चुने गए पहले इमाम के वक्त से यही परंपरा अब तक चली आ रही है।

शाही इमाम का इतिहास?

बता दें, जामा मस्जिद के शाही इमाम पद पर बुखारी खानदान अपना अधिकार जताता आया है। मुस्लिम समुदाय में यह बेहद महत्वपूर्ण पद है और वर्षों से बुखारी परिवार के लोग ही यह जिम्मेदारी संभालते आए हैं। वैसे शाही इमाम का मतलब देखें तो शाही का मतलब वो इमाम होते हैं जो मस्जिद में नमाज पढ़ाते हैं।इतिहासकारों की मानें तो साल 1650 के दशक में जब मुगल बादशाह शाहजहां ने दिल्ली में जामा मस्जिद बनवाई तो बुखारा शासकों को एक इमाम की जरूरत पड़ी। तब मौलाना अब्दुल गफूर शाही बुखारी को शाही इमाम का खिताब दिया गया।

शाबान बुखारी के बारे में जानें

बता दें, इमाम सैयद अहमद बुखारी के बेटे सैयद उसामा शाबान बुखारी जामा मस्जिद के चौदहवें शाही इमाम होंगे। मिली जानकारी के अनुसार, वर्ष 2014 में उन्हें नायब इमाम की जिम्मेदारी मिली थी। इसके बाद से भी वह देश- विदेशों में मजहब से जुड़ी ट्रेनिंग ले रहे हैं। क्योंकि शाही इमाम के पद पर होने के लिए इस्लाम से जुड़ी तमाम नॉलेज होना जरूरी होता है।

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