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Delhi Pollution: दिल्ली की हवा प्रदूषण से भरी , सांस लेना मतलब 12 साल कम, स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा

• LAST UPDATED : August 30, 2023

India News(इंडिया न्यूज़)Delhi Pollution: राजधानी दिल्ली (Delhi) वैसे तो खूबसूरत ऐतिहासिक इमारतों और देश के राजनीतिक केंद्र के रुप में जाना जाता है। साथ ही एक और वजह से भी जाना जाता है, वह यहां का प्रदूषण पर हालिया शोध के आधार पर, राजधानी को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में उच्चतम स्थान पर है। अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।

अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर पाया गया है और अगर इसी तरह प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की तय सीमा से ज्यादा बना रहा तो दिल्लीवासियों की जीवन प्रत्याशा 11.9 साल कम होने की आशंका है। शिकागो यूनिवर्सिटी के ऊर्ज नीति संस्था द्वारा वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (AQLI) पर शोध पत्र जारी किया गया है। इस अध्ययन के मुताबिक, ‘देश की एक सौ तीस करोड़ आबादी उन क्षेत्रों में निवास करती है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित प्रदूषण स्तर 5 μg/m3 से अधिक है।

दिल्ली की घनी आबादी प्रदूषण 

भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों में भूवैज्ञानिक और मौसम के कारकों की वजह से प्रदूषण में इजाफा हुआ है। वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक ने धूल कण और समुद्री नमक के 2.5 पीएम का अध्ययन किया। ये जांच इस निष्कर्ष पर पहुंची कि मानवीय गतिविधियां प्रदूषण में इजाफा करने में अहम रोल अदा करते हैं। राजधानी में वायु प्रदूषण होने की मुख्य वजह जनसंख्या घनत्व है। दिल्ली में देश के दूसरे शहरों के मुकाबले, आबादी का घनत्व तीन गुना अधिक है।

इन 6 देशों का भी बुरा हाल

बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, चीन, नाइजीरिया और इंडोनेशिया में पड़ता है, जहां लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण अपने जीवन के एक से 6 साल से ज्यादा समय गंवा देते हैं।’ सरकार ने ‘प्रदूषण के खिलाफ युद्ध छेड़ते हुए’ 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम शुरू किया था। एनसीएपी का लक्ष्य राष्ट्रीय स्तर पर 2017 की तुलना में 2024 तक कण प्रदूषण को 20 से 30 प्रतिशत तक कम करना रखा गया और उन 102 शहरों पर ध्यान केंद्रित किया गया जो भारत के राष्ट्रीय वार्षिक औसत पीएम 2.5 मानक को पूरा नहीं कर रहे थे। सरकार के नए लक्ष्य के अनुसार 2025-26 तक 131 शहरों में प्रदूषण को 2017 की तुलना में 40 प्रतिशत तक कम करना है।

जानें पूरी रिपोर्ट

अध्ययन में बताया गया है कि डब्ल्यूएचओ की पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की निर्धारित सीमा की स्थिति में होने वाली जीवन प्रत्याशा की तुलना में हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों से होने वाला प्रदूषण (पीएम 2.5) औसत भारतीय की जीवन प्रत्याशा को 5.3 वर्ष कम कर देता है। AQLI के अनुसार दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है और अगर प्रदूषण का मौजूदा स्तर बरकरार रहा, तो एक करोड़ 80 लाख लोगों की जीवन प्रत्याशा डब्यूएचओ की निर्धारित सीमा के सापेक्ष औसतन 11.9 साल और राष्ट्रीय दिशानिर्देश के सापेक्ष 8.5 वर्ष कम होने की आशंका है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कण (पार्टिकुलेट मैटर) प्रदूषण समय के साथ बढ़ा है और 1998 से 2021 तक भारत में औसत वार्षिक कण प्रदूषण 67.7 प्रतिशत बढ़ा, जिससे औसत जीवन प्रत्याशा 2.3 साल कम हो गई। इसमें कहा गया कि 2013 से 2021 तक दुनिया में प्रदूषण वृद्धि में से 59.1 फीसदी के लिए भारत जिम्मेदार था। देश के सबसे प्रदूषित क्षेत्र- उत्तरी मैदानों में अगर प्रदूषण का मौजूदा स्तर बरकरार रहा, तो 52 करोड़ 12 लाख लोग या देश की आबादी के 38.9 प्रतिशत हिस्से की जीवन प्रत्याशा औसतन आठ साल कम होने की आशंका है।

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