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Delhi Pollution: प्रदूषण का कहर! सासों में घुला जहर, जानिए दिल्ली का हाल

• LAST UPDATED : May 2, 2024

India News Delhi (इंडिया न्यूज़), Delhi Pollution: सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) ने जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में सबसे अधिक 48 मॉनिटरिंग स्टेशन हैं, जिनमें से 38 रियल टाइम और 10 मैन्युअल हैं। यहां प्रदूषण की निगरानी के बावजूद, प्रदूषण में कोई सुधार नहीं दिख रहा है। वाहनों के प्रदूषण को रोकने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं है। इस वजह से पीएम 2.5 और पीएम 10 भी सीमा से अधिक हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि सरकारी स्तर पर प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं, लेकिन उनके क्रियान्वयन में सख्ती कम है।

Delhi Pollution: प्रदुषण की असल वजह

दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या को हल करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती विभागों और स्थानीय निकायों के बीच सही तालमेल का न होना है। नियमों और कायदों के पालन की कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कार्य योजनाओं का प्रभावी निष्पादन नहीं हो पा रहा है।

प्रदूषण की मुख्य वजह है सार्वजनिक परिवहन की कमी। बसों की अधिकता के बावजूद, उनकी संख्या पर्याप्त नहीं है। इसके कारण, लोग निजी गाड़ियों का उपयोग करते हैं जो वायु प्रदूषण बढ़ाती है। सरकार की योजनाओं का प्रभाव जमीन पर नहीं हो पा रहा है, जिससे सड़कों पर कूड़ा जलता रहता है।

निगरानी के बावजूद ये है हाल

सीएसई द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में कुल 48 वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशन हैं। इनमें से 38 स्टेशन रियल टाइम मॉनिटरिंग के लिए हैं, जबकि 10 स्टेशन मैन्युअल मोड में काम करते हैं। यहाँ तक कि इतनी बड़ी निगरानी के बावजूद भी, प्रदूषण को कम करने में कोई सफलता नहीं हुई है। साथ ही साथ नीचे लिखी गयी कुछ वजह भी प्रदूषण का कारन बानी हुई है:

  • वाहनों के प्रदूषण पर नियंत्रण की कोई सख्त व्यवस्था नहीं है।
  • प्रदूषण जांच केंद्रों में जांच संवेदनशीलता से नहीं की जाती।
  • यातायात और परिवहन विभाग के कर्मचारियों द्वारा इनके चालान नहीं काटे जाते।
  • कचरा निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं है, जिससे लैंडफिल साइट्स भी आबोहवा को दूषित करती हैं।
  • ग्रेडिंग रिस्पॉन्स सिस्टम तो है, लेकिन उसका पालन ईमानदारी और सख्ती से नहीं हो रहा है।

Delhi Pollution: सरकार द्वारा नज़रअंदाज़ की गयी कुछ चीज़े

  • सरकारी स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वयन में दिक्कत है।
  • फंड निर्धारित करने में समस्या है।
  • स्थानीय स्तर पर कार्रवाई के लिए योजना नहीं है।
  • हवा को साफ करने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है।
  • पर्यावरण के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए विकास कैसे हो, इसके लिए कोई निर्देश नहीं है।

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