India News ( इंडिया न्यूज) : तलाक शब्द का जिक्र होते ही सबसे ज्यादा चर्चा होती है मेंटिनेंस यानी गुजारा भत्ता की। जिससे राहत पाने के लिए विपक्षी पक्ष की ओर से अदालतों में अजीबोगरीब दलीलें दी जाती हैं, जिस पर कोर्ट की टिप्पणी भविष्य में मामलों के लिए नजीर बनने के साथ मीडिया की सुर्खियों में भी आ जाती है। ऐसा ही मामला दिल्ली हाई कोर्ट से सामने आया है, जहाँ अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यहां एक व्यक्ति ने इस आधार पर पत्नी को दिए जाने वाले अंतरिम गुजारा भत्ते की राशि 25 हजार रुपये से घटाकर 15 हजार रुपये करने का अनुरोध किया था कि वह (पत्नी) विज्ञान में स्नातक तक पढ़ी हुई है।
जिसपर फैसला सुनते हुए हाई कोर्ट ने पति को नसीहत दी है कि ‘सिर्फ इसलिए कि पत्नी स्नातक तक की पढ़ाई कर चुकी है, उसे नौकरी के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि यह नहीं माना जा सकता कि वह अलग रह रहे पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए जानबूझकर काम नहीं कर रही है।
बता दें, इस मामले में न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि पत्नी स्नातक तक पढ़ी हुई है, हालांकि उसे कभी लाभप्रद रोजगार नहीं मिला। पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट द्वारा निर्धारित अंतरिम गुजारा भत्ते में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है। पीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा, ‘इस बात का कोई मतलब नहीं है कि केवल इसलिए कि पत्नी के पास स्नातक की डिग्री है, उसे नौकरी करने के लिए मजबूर किया जाए। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि ‘ ऐसा भी नहीं माना जा सकता कि वह पति से अंतरिम भत्ता पाने के इरादे से काम नहीं कर रही है।’
इसके अलावा अदालत ने पत्नी की उस याचिका पर गुजारा भत्ता राशि बढ़ाने से भी इनकार कर दिया। जिसमें पत्नी ने पति से गुजरा भत्ता 25 हजार से ज्यादा बढ़ाने की अर्जी लगाई थी। इसके अलावा कोर्ट ने पति द्वारा अंतरिम गुजारा-भत्ते के भुगतान में देरी पर 1,000 रुपये प्रतिदिन के जुर्माने को भी रद्द कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ते के देरी से भुगतान के लिए प्रति वर्ष छह प्रतिशत की दर से पति ब्याज का भुगतान करे।
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