शीवेन्द्र नई, दिल्ली।
Environmentalist Shankar Bisht reached Delhi after Taking 700 km Resolution Padyatra पर्यावरण सुरक्षा एवं वनों को आग से बचाने का संदेश जनजन तक पहुंचाने को लेकर सीमांत गांव चनौला-खजुरानी से पदयात्रा पर निकले पर्यावरणप्रेमी शंकर सिंह बिष्ट जल बचाओ-जंगल बचाओ के संदेश के साथ दिल्ली पहुंच गए। राजधानी में उन्होंने केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव से मुलाकात की, उन्होंने प्रधानमंत्री और पर्यावरण मंत्री को अपना संकल्प ज्ञापन सौंपा। इससे पहले दिल्ली में वेस्ट विनोद नगर में पहाड़ी समाज के लोगों ने फूल मालाओं से उनका गर्मजोशी के साथ स्वागत किया।
700 किमी की पैदल यात्रा
शंकर बिष्ट ने बताया कि उनकी 700 किमी की पैदल यात्रा दिल्ली में राष्टपति भवन के द्वार पर पहुंच कर पूर्ण हुई। इसमें उन्होंने स्थान-स्थान पर आमजन को पर्यावरण सुरक्षा के लिए जंगलों को आग से बचाने का संदेश दिया। बताया कि जब जंगल सुरक्षित रहेंगे तो धरती पर जीवन सुरक्षित रहेगा। आनंद सिंह बिष्ट के पर्यावरण प्रेमी पुत्र शंकर ने राष्टपति भवन के द्वार पर पहुंच कर अपनी संकल्प यात्रा का समापन किया और राष्टपति को अपना ज्ञापन भी भिजवाया।
दिल्ली पहुंचकर उन्होंने केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव से मुलाकात की और उन्हें पहडों में लगातार धधकती आग और उसके समाधान के साथ चीड की समस्या से अवगत कराते हुए ज्ञापन सौंपा। केन्द्रीय मंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे देहरादून जा रहे हैं और वहां इस मुददे पर बैठक में चर्चा करेंगे।
पर्यावरणप्रेमी शंकर सिंह बिष्ट ने एक अन्य साथी प्रमोद बिष्ट को साथ लेकर यह यात्रा एक अप्रैल को विकास खंड के चनौला (खजुरानी) गांव से शुरू की। जो चैखुटिया, गैरसैंण, कर्णप्रयाग, श्रीनगर, देवप्रयाग, ऋषिकेश, देहरादून, रुड़की, मेरठ होते हुए रविवार देर सायं दिल्ली पहुंची। जहां वेस्ट विनोद नगर में पहाड़ी समाज के लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया। शंकर सिंह बिष्ट ने पदयात्रा के अपने अनुभव बताए। कहा कि पर्यावरण सुरक्षा व संरक्षण को जनसहभागिता जरूरी है।
जंगलों में लग रही आग Environmentalist Shankar Bisht reached Delhi after Taking 700 km Resolution Padyatra
पर्यावरण पे्रमी शंकर ने बताया कि जंगलों में लग रही आग से प्रतिवर्ष वन संपदा को भारी नुकसान हो रहा है। इसी चिंता के मद्देनजर लोगों में जनजागरूकता उत्पन्न करने के लिए यह पदयात्रा निकाली गई। स्थान-स्थान पर लोगों ने मेरे संदेश का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि पहाडों पर आग्निकांड की समस्या का प्रमुख कारण चीड के पेड हैं, जिन्हें अंगेे्रजों ने पहाडों पर रोपा था।
उन्होंने बताया कि चीड के पेडों के पत्ते धरती पर गिरते हैं और सूखे पत्तों में लगी आग पहाडों के बडे एरिया को अपने आगोश में ले लेती है। उन्होंने कहा यही नहीं चीड के पेड पहाडों में जल की समस्या भी पैदा कर रहे हैं, क्योंकि ये जहां होते हैं धरती से पानी सौंख लेते हैं और अन्य प्रजाति के पौधों को पनपने नहीं देते। इससे हिमालय का अस्तित्व खतरे में पडा है।