इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
High Court seeks reply from Delhi Police : नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में 13 दिसंबर 2019 को आंदोलन के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोपित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र शरजील इमाम की जमानत याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल व न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता की पीठ ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए दस दिन में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
मामले में अगली सुनवाई 24 मार्च को होगी। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि निचली अदालत ने कुछ भी नहीं किया है। ये सभी अपराध सात साल से कम के हैं, हम पुलिस पूछ रहे हैं कि उन्हें जमानत क्यों नहीं दी जानी चाहिए? पीठ ने यह भी पूछा क्या इमाम के भागने का खतरा है और क्या वह सुबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है, मामले में गवाह कौन हैं?
इसके जवाब में विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने कहा कि इमाम पर आइपीसी की धारा-124 ए (देशद्रोह की सजा) के तहत भी आरोप लगाया गया है और इसमें आजीवन कारावास होती है। पीठ ने कहा कि देशद्रोह के लिए हिंसा के लिए विशेष आह्वान की आवश्यकता होती है और इस मुद्दे से अदालत बहुत पहले निपट चुकी है। (High Court seeks reply from Delhi Police)
अदालत ने इमाम के वकील से भी पूछा कि अगर वह इमाम को जमानत पर रिहा करने पर विचार करती है तो यह कैसे पता चलेगा कि जमानत मिलने के बाद वह दोबारा से इस तरह के भाषण देने के कृत्य में शामिल नहीं होगा। इमाम के अधिवक्ता तनवीर अहमद मीर ने कहा कि वह पिछले 25 महीनों से हिरासत में हैं और निकट भविष्य में मुकदमा खत्म होने की कोई संभावना नहीं है। उन्होंने कहा कि 170 से अधिक गवाहों से पूछताछ की जानी है और मुकदमा अभी तक शुरू नहीं हुआ है।
जमानत याचिका में कहा गया है कि इमाम के खिलाफ 25 जनवरी 2020 को तत्काल प्राथमिकी दर्ज की गई थी। साथ ही उनके द्वारा दिए गए एक ही भाषण के लिए कई राज्यों में चार अन्य प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इमाम को 28 जनवरी 2020 को बिहार से गिरफ्तार किया गया था और आठ दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया था। इसके बाद से वह न्यायिक हिरासत में है। शरजील को दिल्ली दंगा की साजिश रचने के एक मामले में भी आरोपित बनाया गया है।
साकेत कोर्ट द्वारा जमानत देने से इन्कार करने के 22 अक्टूबर 2021 के आदेश को इमाम ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है। निचली अदालत ने यह कहते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी थी कि शब्द बहुत अहम नहीं होते हैं, लेकिन व्यक्ति के विचार लंबे समय तक जिंदा रहते हैं। इसलिए सांप्रदायिक शांति व सद्भाव की कीमत पर किसी को बोलने की आजादी नहीं दी जा सकती है। (High Court seeks reply from Delhi Police)
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