इंडिया न्यूज,नई दिल्ली ।
If I Had Been on This Square Maybe My Son Would Have Survived : अगर मैं इस चौक पर होता तो शायद मेरा इकलौता बेटा बच जाता । यह कहना है उस बाप का जो सलीमपुर चौक पर ट्रेफिक संभालने का काम करता है । गंगाराम की उम्र 75 साल है। शरीर मे झुर्रियां पड़ गई हैं। सांस भी फूलती है। बीते दिनों ही मोतियाबिंद का आपरेशन हुआ है। फिर भी मोर्चे पर डटे दिखे। सीलमपुर चौक पर ट्रैफिक संभालने का सिलसिला 32 साल पुराना है। शुरूआत शौकिया की।
हुआ यह कि सीलमपुर में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक की छोटी सी दुकान खोली। ट्रैफिक पुलिस वाले वहीं अपना वायरलेस ठीक कराने आते। इससे उनका भी मन इस काम को सीखने का हुआ। दोस्ती हो जाने से ट्रैफिक पुलिस ने भी सहयोग किया। लेकिन एक दिन जब वह चौक पर नहीं थे, तभी उनके 39 साल के इकलौते बेटे की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। यह उनके लिए बड़ा सदमा था। इसका अफसोस उनको अभी तक है।
सवाल करने पर लखखड़ाती आवाज में उन्होंने कहा भी, ‘अगर मैं उस वक्त चौक पर होता, तो शायद मेरा बेटा बच जाता। तभी मैंने तय कर लिया था कि अब चौक पर रहना है। पूरा समय इसी चौराहे पर दूंगा। मेरे रहते अब इस चौराहे पर कोई दुर्घटना नहीं होगी।’
घर चलाने के सवाल पर गंगाराम ने बताया, ‘जब बेटे की मौत हुई तो उसकी पत्नी और दो बच्चियां हैं। अब दोनों की शादी कर दी है। बहू भी एक निजी अस्पताल में काम करती है। इससे गुजर हो जाती है। पेट भरने से ज्यादा की इच्छा भी नहीं है। जिंदगी का मकसद ही यही है कि हमारी तरह किसी दूसरे को बेटे के जाने का गम न हो।’
दिल्ली पुलिस से भी गंगाराम के काम को पहचान मिली है। इस काम के लिए उन्हें ट्रैफिक पुलिस और दिल्ली सरकार से कई बार सम्मान व पुरस्कार भी मिला है। बात करते-करते एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी नजदीक पहुंच गया। बगैर कुछ पूछे ही वह बोलने लगा, ‘गंगाराम बहुत खुशदिल इंसान हैं। इस उम्र में भी वे बड़े अनुशासित हैं। एम्बुलेंस देखते ही दौड़ जाते हैं। उसे ट्रैफिक से निकालने के लिए। इस जमाने मे भला कहां होते हैं ऐसे बड़े दिलवाले।’
If I Had Been on This Square Maybe My Son Would Have Survived