India News (इंडिया न्यूज), Interesting Story Behind Kite Flying Pursuit, नई दिल्ली: आसमां में उड़ती रंग-बिरंगी पतंगें वैचारिक स्वतंत्रता का एहसास कराती हैं। अगर बात करें दिल्ली की तो यहाँ एक खास प्रचलन है, वह है स्वतंत्रता दिवस को ‘सुबह तिरंगे को सलाम और सायं काल को आसमां में तिरंगे रूप में रंगी पतंगों को उड़ाकर आजादी की खुशी मनाना है’। यहाँ के लोगों को कैसे लगा यह शौक व चसका, आज हम इसी विषय पर बात करेंगे।
बता दें आपको कि हैं पतंगबाजी का इतिहास लगभग 2 हजार साल पुराना है। चीन में इसकी सबसे पहले शुरुआत हुई और उस समय पतंग को संदेश भेजने के लिए भी उपयोग में लाया गया था। अगर बात करें भारत की तो यहां पर पतंग को चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग यानि सन 402 में चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के दौरान लेकर आए थे। इसके बाद से मुगल बादशाह शाहजहां ने यमुना किनारे खुले मैदान में पतंगबाजी की प्रतियोगिता करायी थी कि कौन, आसमान में सबसे ऊंची पतंग उड़ा सकता है। जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने प्रतिभाग लिया था। बताते हैं कि तभी से यहां प्रत्येक वर्ष पतंग उड़ाने का चलन बन गया है, मानो अब लोगों में खुशी का इजहार करने का एक बहाना मिल गया हो। तभी से लगातार धीरे-धीरे इस नए खेल व रूचि के रूप में पतंगबाजी लोगों के घरों में पहचान बनाने लग गई है और उसके बाद से पुरानी दिल्ली में पतंगबाजी हर उत्सव का हिस्सा बन गई है।
इतिहासकार अमित राय जैन बताते हैं कि वक्त के साथ चीजें नए दौर में जरूर पहुंच जाती हैं, पर पहले युद्ध के मैदान में एक-दूसरे को संदेश देने की प्रथा में भी पतंग का उपयोग होता था। असल में आमने-सामने की लड़ाई में इस नियम को माना जाता था। इसमें एक तो संदेशवाहक की जान का खतरा नहीं होता था, वहीं दूसरा दुश्मन तक अपनी बात पहुंचाने का ये आसन तरीका था।
ऐसा इतिहासकार मानते है कि चीन के लेखों में, इस बात का जिक्र किया गया है कि 549 ईसवी में कागज की पतंगों को उड़ाया जाने लगा था। असल में उस समय कागज से बनी पतंग को बचाव अभियान, संदेश भेजने के रूप में उपयोग किया जाता था।साथ ही मध्ययुगीन चीनी स्रोतों में लिखा मिलता है कि पतंगों को पैमाइश, हवा के परीक्षण, सिग्नल भेजने और सैन्य अभियानों के संचार के लिए भी उपयोग किया जाता था। यह माना जाता है कि सबसे पहली चीनी पतंग चपटी और आयातकार हुआ करती थी, बाद में पतंगों में बदलाव समय दर समय आते रहे हैं।
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