India News (इंडिया न्यूज), Lakshagriha case : लाक्षागृह मामले में बागपत कोर्ट ने हिंदू पक्ष को जमीन का मालिकाना हक दे दिया है। 100 बीघे जमीन का मालिकाना हक हिंदू पक्ष को देने का फैसला आ गया है। ये मामला 1970 से चल रहा है और करीब 54 साल बाद आखिरकार कोर्ट का फैसला आया है।
उत्तर प्रदेश की बागपत कोर्ट ने लाक्षागृह मामले में हिंदू पक्ष के पक्ष में अहम फैसला सुनाया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत के बरनावा में लाक्षागृह को लेकर चल रहे विवाद पर आखिरकार 54 साल बाद फैसला आ गया है। अदालती कार्यवाही 1970 में शुरू हुई और बागपत जिला और सत्र न्यायालय में सिविल जज जूनियर डिवीजन , की अदालत में आयोजित की गई।
प्रत्याशित फैसला मंगलवार को सुनाया गया, जिसने इसमें शामिल हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों का ध्यान आकर्षित किया। लाक्षागृह टीले को लेकर पांच दशक से अधिक समय से चल रहे विवाद का अब कोर्ट ने निपटारा कर दिया है। गौरतलब है कि 1970 में बरनावा निवासी मुकीम खान ने वक्फ बोर्ड के प्रतिनिधि के तौर पर मेरठ की सरधना अदालत में मुकदमा दायर किया था।
लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया गया था। उन्होंने दावा किया कि बरनावा स्थित लाक्षागृह टीले में शेख बदरुद्दीन की कब्र और एक बड़ा कब्रिस्तान है। इस मामले पर वक्फ बोर्ड का अधिकार क्षेत्र है। उन्होंने आरोप लगाया कि एक बाहरी व्यक्ति कृष्णदत्त महाराज कब्रिस्तान को ध्वस्त कर इसे हिंदू तीर्थ स्थल में बदलने का इरादा रखते हैं। मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज दोनों का निधन हो चुका है, लेकिन दोनों पक्षों के प्रतिनिधि अभी भी मामले पर बहस कर रहे हैं।
मुस्लिम पक्ष का दावा है कि वहां बदरुद्दीन नाम के उनके संत की कब्र हुआ करती थी, जिसे बाद में हटा दिया गया। यह उनके कब्रिस्तान का स्थान है। इस विवादित 108 बीघे जमीन पर पांडव काल की एक सुरंग है। ऐसा माना जाता है कि पांडव इसी सुरंग के जरिए लाक्षागृह से भाग निकले थे। इतिहासकारों का कहना है कि अधिकांश खुदाई इसी स्थान पर की गई है, और इसके भीतर साक्ष्य खोजे गए हैं।इसकी आयु के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यहां मिले अधिकांश साक्ष्य हिंदू सभ्यता से संबंधित हैं। मुस्लिम पक्ष की ओर से किए गए दावे पर हैरानी जताई गई है । एक ही भूमि पर गुरुकुल और कृष्णदत्त आश्रम का प्रबंधन करने वाले आचार्य का तर्क है,कि कब्र और मुसलमानों की अवधारणा अपेक्षाकृत हाल ही में भारत में आई, जबकि यह स्थान हजारों वर्षों से पांडव काल से है।
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