India News(इंडिया न्यूज़), Makar Sankranti: मकर संक्रांति का दिन आने वाला है, देशभर में तिल और गुड़ की मिठास के साथ यह त्योहार मनाया जाएगा। वहीं इस त्योहार का धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। इस दिन जगत को प्रकाशित करने वाले ग्रहों के राजा सूर्य देव की पूजा करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। इससे जुड़ी एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि इसी दिन महाभारत के भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति का दिन ही चुना था। ऐसी कौन सी खास वजह थी कि भीष्म पितामह ने सूर्य अस्त होने तक अपने प्राणों की रक्षा की और सूर्य अस्त होते ही बाणों की शय्या पर लेटकर अपने प्राण त्याग दिये। आइए जानते हैं एक पौराणिक कथा के अनुसार इसके पीछे क्या कारण था।
महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में भीष्म पितामह का नाम आता है। वह भगवान कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। भीष्म पितामह शांतुन के दूसरे पुत्र थे। उनका जन्म देवी गंगा के गर्भ से हुआ था। उनके पिता शांतनु उनसे प्रसन्न हुए और उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। इस वरदान से वह मृत्यु के समय इच्छानुसार अपने प्राण त्याग सकता था। भीष्म पितामह एक महान योद्धा, दृढ़ प्रतिज्ञा करने वाले और बहुत ज्ञानी थे।
महाभारत युद्ध के दौरान उन्होंने शिखंडी के सामने एक भी तीर नहीं चलाया। इससे वह उनके बाणों के जाल में फँस गए और शय्या पर गिर पड़े। उनकी मृत्यु निकट थी और उनका शरीर तीरों से छलनी हो गया था। जब वह अंतिम सांस ले रहे थे तो वह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे और श्री कृष्ण का नाम जपते रहे। क्योंकि श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि बुद्धिमान पुरुष उत्तरायण में अपने प्राणों का त्याग करते हैं। उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और यह बात भीष्ण पितामह को पता थी। प्राप्त वरदान के कारण उन्होंने अपना जीवन उत्तरायण तक बाणों की शय्या पर ही रखा। सूर्य के उत्तरायण होते ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये और अंत में मोक्ष प्राप्त किया।
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