इंडिया न्यूज, नई दिल्ली : भारत की नदियों में बढ़ते प्रदूषण का यह आलम है कि देश की अधिकांश नदियां जहरीली हो गई हैं। यह खुलासा सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने अपने ताजा रिपोर्ट में की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन नदियों में सीसा, कैडमियम सरीखे जहरीले भारी धातुओं की मात्रा में तीव्र बढोत्तरी हुई है। इससे न केवल मनुष्यों बल्कि अन्य जीवों और वनस्पतियों पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में हर चार नदी-निगरानी स्टेशनों में से तीन में बड़े स्तर पर जहरीली धातुओं, जैसे- सीसा, लोहा, निकिल, कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम और तांबे के खतरनाक स्तर मिले है। 117 नदियों और सहायक नदियों में फैले एक-चौथाई निगरानी स्टेशनों में, दो या अधिक जहरीली धातुओं के उच्च स्तर पाए गए है। यह पानी में धातु प्रदूषण का बेहद खतरनाक स्तर है।
ब्रिटेन के न्यूकैसल यूनिवर्सिटी और दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी द्वारा हाल ही में किए गए एक शोध में यह दावा किया गया है कि ये भारी धातुएं नदियों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के स्तर को बढ़ाने के लिए जानी जाती हैं। शोध में भारत में गंगा और यमुना नदियों के जलग्रहण क्षेत्र के गाद या तलछट में एंटीबायोटिक और धातु प्रतिरोध की मात्रा का पता लगाया गया। एंटीबायोटिक प्रतिरोध तब होता है जब संक्रमण पैदा करने वाले बैक्टीरिया और कवक उनके इलाज के लिए उपयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधी बन जाते हैं।
गंगा में बेतहाशा बढ़ा धातु प्रदूषण
ताजा रिपोर्ट में देश की जीवनधारा कही जाने वाली गंगा नदी में धातु प्रदूषण काफी बढ़ा हुआ देखा गया। गंगा के 33 निगरानी स्टेशनों में से 10 में प्रदूषण का स्तर काफी अधिक है। 2510 किमी लंबी इस नदी पर देश की 40% आबादी की निर्भरता है। कोरोनाकाल के दौरान आईआईटी कानपुर द्वारा किए गए एक शोध में दावा किया गया था कि गंगा में भारी धातु (कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम, लेड, मरकरी, आयरन, निकिल व जिंक) से होने वाला प्रदूषण 50 प्रतिशत कम हुआ है। शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक इकाइयों से उत्सर्जित किए जाने वाले अपशिष्ट जल में कमी के कारण ही ऐसा हो सका। जिससे यह साबित होता है कि यदि औद्योगिक इकाइयों से उत्सर्जित किए जाने वाले अपशिष्ट जल को कही और शिफ्ट कर दिया जाता है तो ये नदी काफी हद तक स्वच्छ हो जाएगी।
केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद 13 मई 2015 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गंगा और इसकी सहायक नदियों की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए पर 2019-2020 तक सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की केंद्र की प्रस्तावित कार्य योजना को मंजूरी दे दी थी। अकेले वित्तीय वर्ष 2020-21 से वित्तीय वर्ष 2021-22 (31 जनवरी, 2022 तक) के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को 2,250.00 करोड़ रुपये दिया गया। आंकड़ों के अनुसार, अगस्त 2021 तक नमामि गंगे परियोजना के लिये 30,255 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं और 11,842 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।
बीते मई में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन यानी एनएमसीजी की कार्यकारिणी ने लगभग 660 करोड़ रुपये की लागत वाली 11 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। कार्यकारिणी की 42वीं बैठक में यूपी के सहारनपुर जिले में हिंडन नदी के लिए 135 एमएलडी एसटीपी परियोजना को मंजूरी दी गई। इसके अलावा उत्तराखंड और यूपी से जुड़ीं कई अन्य परियोजनाओं को भी मंजूरी दी गई है। इस तरह केंद्र सरकार निदयों के प्रदूषण को कम करने के लिए यथा संभव प्रयास कर रही है।
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