इंडिया न्यूज,नई दिल्ली।
Now the water will be purified and used in the fields according to the standards : खेतों की सिंचाई के लिए अब औद्योगिक इकाइयों का कचरा युक्त पानी भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। कृषि वैज्ञानिकों के निर्देशन में पहले उस जल का शोधन किया जाएगा और फिर तय मानकों के अनुरूप उसे खेतों में डाला जाएगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने इसे लेकर प्राथमिक गाइडलाइंस जारी कर दी है। जल्द ही विस्तृत गाइडलाइंस भी जारी की जाएगी।
इस तरह का प्रयोग पहली बार किया जाएगा। बता दें कि दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, देश भर में औद्योगिक इकाइयों के कचरे का निष्पादन बड़ी समस्या बना हुआ है। वैसे तो अधिकांश औद्योगिक क्षेत्रों में इस कचरे का शोधन और उपचार करने के लिए कामन इफ्यूलेंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) भी लगे हैं, लेकिन ये कहीं खराब रहते हैं, तो कहीं पूर्ण क्षमता से काम नहीं करते।
ऐसे में उद्योगों का रासायनिक कचरा युक्त पानी नदी-नालों और समुद्र में ही जाता रहा है। यमुना, हिंडन, साहिबी आदि नदियां इसी वजह से नाले में तब्दील होकर रह गई हैं।इसी के मद्देनजर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने सीपीसीबी को औद्योगिक कचरे के निस्तारण का अन्य विकल्प निकालने को कहा।
इस पर सीपीसीबी ने आइआइटी दिल्ली, नेशनल एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग इंस्टीटयूट (नीरी) और सीपीसीबी विशेषज्ञों की एक टीम गठित की गई। इसी टीम के सुझाव पर ही औद्योगिक कचरे को सिंचाई के लिए इस्तेमाल करने का विकल्प रखा गया है। विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर आधारित सीपीसीबी की प्राथमिक गाइडलाइंस कहती है कि इस विकल्प को अपनाने के लिए किसी भी औद्योगिक क्षेत्र को अपने साथ एक कृषि वैज्ञानिक को जोड़ना होगा। उन्हीं के निर्देशन में ही उद्योगों के कचरे का उपचार किया जाएगा।
औद्योगिक क्षेत्र को एक काम्प्रिहेंसिव इरीगेशन मैनेजमेंट प्लान भी बनाना होगा, जिसे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या समिति से स्वीकृति लेनी होगी। सीपीसीबी के मुताबिक इस प्लान में सीजन, फसल की अवधि, मिट्टी की उपजाऊ क्षमता, सिंचाई क्षेत्र का कुल एरिया, कृषि जलवायु और किसानों के साथ समझौते की भी जानकारी होगी। यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि सिंचाई के इस्तेमाल किया जाने वाला जल मानकों के अनुरूप हो।
फसल, जलवायु, सिंचाई का प्रकार, मिट्टी की उपजाऊ क्षमता, मिट्टी की भेद्यता और मिट्टी में नमक की मात्रा।
पर्यावरण संरक्षण नियम-1986 के अनुसार औद्योगिक कचरे के पानी में कुल घुलित ठोस (टीडीएस) की मात्रा 2,100 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा सोडियम सोखने का अनुपात (एसएआर) मिट्टी/फसल के प्रकार और कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए किसी भी अन्य मानक को पूरा करने के अलावा 18 से कम या 26 से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
Now the water will be purified and used in the fields according to the standards
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