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Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह पर चल रहे विवाद का हुआ फैसला, SC ने नहीं दी मान्यता

India News(इंडिया न्यूज़), Same Sex Marriage  भारत सरकार ने समलैंगिकों के बीच विवाह का विरोध किया है। सरकार का कहना है कि समलैंगिक विवाह की मांग शहरों में रहने वाले संभ्रांत वर्ग के लोगों से आती है। दुनिया के कुछ देशों में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दे दी गई है। भारत में भी इसे वैध बनाने की मांग काफी समय से उठ रही है। सुप्रीम कोर्ट आज समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुना रहा है।

समलैंगिक विवाह फैसला

A. इस कोर्ट को मामले की सुनवाई करने का अधिकार है।
B. क्वीर एक प्राकृतिक घटना है जो भारत में सदियों से ज्ञात है। यह न तो शहरी है और न ही संभ्रांतवादी।
C. विवाह स्थिर नहीं है।

सीजेआई: यह न्यायालय संस्थागत सीमाओं के कारण विशेष विवाह अधिनियम को रद्द नहीं कर सकता है या एसएमए में शब्दों को नहीं पढ़ सकता है। न्यायालय उत्तराधिकार अधिनियम जैसे संबद्ध कानूनों में शब्दों को नहीं पढ़ सकता क्योंकि यह कानून की तरह होगा।

ट्रांसजेंडर शादी कर सकते हैं

सीजेआई का कहना है कि एक ट्रांसजेंडर पुरुष किसी महिला से शादी कर सकता है। एक ट्रांसजेंडर पुरुष किसी महिला से शादी कर सकता है और इसके विपरीत भी। यदि कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति किसी विषमलैंगिक व्यक्ति से शादी करना चाहता है तो ऐसे विवाह को मान्यता दी जाएगी क्योंकि एक पुरुष होगा और दूसरा महिला होगी, ट्रांसजेंडर पुरुष को एक महिला से शादी करने का अधिकार है, पुरुष भी शादी कर सकता है और अगर अनुमति नहीं दी गई तो यह ट्रांसजेंडर अधिनियम का उल्लंघन होगा, कानून यह नहीं मान सकता कि केवल विषमलैंगिक जोड़े ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं। यह भेदभाव होगा , इसलिए समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ भेदभाव के लिए गोद लेने के नियम संविधान का उल्लंघन हैं।

विशेष विवाह अधिनियम असंवैधानिक नहीं हो सकता: CJI

विशेष विवाह अधिनियम को सिर्फ इसलिए असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यह समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देता है। साथ ही, संसद या राज्य विधानसभाओं को विवाह की एक नई संस्था बनाने के लिए मजबूर करें, किसी व्यक्ति का लिंग उसकी कामुकता के समान नहीं है। फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, हर किसी को अपना पार्टनर चुनने का अधिकार है। अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ जीवन एक मौलिक अधिकार है। विवाह को कानूनी दर्जा जरूर है, लेकिन यह मौलिक अधिकार नहीं है।

CJI बोले- ऐसे लोग सिर्फ शहरी ही नहीं, हर वर्ग में हैं

समलैंगिक विवाह पर फैसला पढ़ते हुए सीजेआई ने टिप्पणी की, मौलिक अधिकारों का मुद्दा हमारे सामने उठाया गया है। इसलिए हमारा फैसला किसी के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं माना जाएगा।’ न्यायालय कानून नहीं बनाता, परन्तु कानून की व्याख्या कर सकता है। यह एक ऐसा विषय है जिसे केवल शहरी उच्च वर्ग तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता। ऐसे लोग हर वर्ग में हैं। हर संगठन समय के साथ बदलता है। विवाह भी एक ऐसी संस्था है। पिछले 200 वर्षों में सती प्रथा उन्मूलन, विधवा पुनर्विवाह से लेकर अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह तक ये बदलाव आए हैं।

क्या है पूरा मामला?

इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट समेत कई अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लिए याचिकाएं दायर की गई थी। इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का निर्देश जारी करने की मांग हुई थी।

पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग दो याचिकाओं को ट्रांसफर करने की मांग को लेकर केंद्र से जवाब मांगा था। इससे पहले दो जोड़ों ने अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की भी मांग की थी। इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक साथ अपने पास ट्रांसफर कर लिया था।

सरकार करती रही याचिकाओं का विरोध

बता दें कि, केंद्र सरकार शुरू से ही इस मांग को लेकर विरोध करती रही है। सरकार ने कहा कि ये न केवल देश की सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है साथ ही इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों 160 प्रावधानों में बदलाव करते हुए पर्सनल लॉ से भी छेड़छाड़ करनी होगी।

वहीं, सुनवाई के दौरान पीठ ने एक बार यहां तक कहा कि बिना कानूनी मान्यता के ही सरकार इन लोगों को राहत देने के लिए क्या कर सकती है? यानी की बैंक अकाउंट, विरासत, बीमा बच्चा गोद लेने आदि के लेकर सरकार संसद में क्या कर सकती है? सरकार ने यह भी कहा था कि वो कैबिनेट सचिव की निगरानी में विशेषज्ञों की समिति बनाकर समलैंगिकों की समस्याओं पर विचार करने को तैयार है।

इसे भी पढ़े: Homosexuality: आज की सदियों पुरानी है समलैंगिकता, जानें प्राचीन भारत के इसके 10 किस्से

Nidhi Jha

Journalist, India News, ITV network.

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