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Saras Mela : सरस मेले में रेजांगला की शौर्य गाथा का किया गया मंचन

• LAST UPDATED : April 19, 2022

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :

Saras Mela : सरस मेले में आयोजित की गई सांस्कृंतिक संध्या में रेजांगला की शौर्य गाथा का मंचन किया गया। इस नाटक में दशार्या गया कि किस प्रकार 1962 के भारत चीन युद्ध में रेजांगला पोस्ट पर सेना की 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी के मु_ी भर सैनिकों ने चीनी सेना को कड़ी टक्कर देते हुए रेजांगला पोस्ट को बचाने में सफलता प्राप्त की।

अच्छे अभिनय के लिए कलाकारों को किया गया पुरस्कृत Saras Mela 

इस संघर्ष में चार्ली कंपनी के 110 वीर जवान सैनिकों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी। इस नाटक का निर्देशन रवि मोहन द्वारा किया गया है। सरस मेले की सांस्कृतिक संध्या में पटौदी के विधायक सत्यप्रकाश जरावता ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करते हुए रेजांगला की लड़ाई में शहीद हुए वीर सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित की और अच्छे अभिनय के लिए कलाकारों को पुरस्कृत किया।

इस अवसर पर पटौदी के विधायक सत्यप्रकाश जरावता ने अपने विचार रखते हुए कहा कि रेजांगला की शौर्य गाथा देश के इतिहास का वह स्वर्णिम अध्याय है, जिसे याद करते हुए हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। रेजांगला की लड़ाई में देश के वीर सपूतों ने जिस प्रकार जंग के मैदान में अपनी जान की परवाह किए बगैर बहादुरी से दुश्मनों का सामना किया, वह देशवासियों विशेषकर युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हंै। उन्होंने रेजांगला की शौर्य गाथा प्रस्तुत करने वाले नाटक के सभी कलाकारों की पीठ थपथपाते हुए उन्हें बधाई व शुभकामनाएं दी।

जंग के मैदान में रच दिया इतिहास 

रेजांगला की लड़ाई के आखरी दिन यानी 18 नवंबर 1962 को मु_ी भर जवानों द्वारा जिस प्रकार वीरता व साहस का परिचय देते हुए जंग के मैदान में इतिहास रच दिया, वह देशवासियों के लिए गौरव की बात है। इस लड़ाई में 13 कुमाऊं चार्ली कंपनी के जवानों ने मेजर शैतान सिंह की अगुवाई में वीरता का ऐसा इतिहास रचा जिसे आज भी पूरे भारतवर्ष द्वारा गर्व से याद किया जाता है।

इस युद्ध के 110 बलिदानियों में 60 जवान हरियाणा के अहिरवाल क्षेत्र से थे। इस नाटक के माध्यम से जनमानस के मन मे अनजाने ही बसे उस मिथ्या पर कड़ा प्रहार किया गया है जहां हम सोचते हैं कि एक सैनिक, चाहे वो जिस भी मुल्क का हो। उसका काम है सिर्फ लड?ा या लड़कर मर जाना जहां उसके मन में अपने परिवार के लिए, अपनों के लिए, अपने संसार के लिए बसी उन भावनाओं से हमें कभी भी कोई मतलब नहीं होता जो उस क्षण उस सैनिक को युद्ध के मैदान में होती हैं। (Saras Mela)

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