Supreme Court:
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराधों के पीड़ितों के साथ संवेदनशील तरीके से निपटने के महत्व को दोहराते हुए निचली अदालतों को बहुत से निर्देश दिए हैं। शीर्ष अदालत ने निर्देश जारी किए हैं कि यौन उत्पीड़न से जुड़े सभी मामलों के लिए बंद कमरे में सुनवाई की इजाजत दी जानी चाहिए।
दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-327 के मुताबिक, सिर्फ दुष्कर्म से संबंधित मामलों में बंद कमरे में सुनवाई होनी अनिवार्य है। इस दायरे का सुप्रीम कोर्ट ने विस्तार किया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए हैं कि पीड़ितों से पूछताछ संवेदनशील और सम्मानजनक तरीके से की जानी चाहिए।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने बताया की यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वालों के लिए कानूनी कार्यवाही बहुत मुश्किल होती है क्योंकि वे आघात और सामाजिक शर्म से का सामना करते हैं। इसीलिए ऐसे मामलों को सही ढ़ंग से संभालने के लिए न्यायालयों की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों का यह कर्तव्य और उत्तरदायित्व है कि वे लोग पीड़ित व्यक्तियों से उचित तरीके से निपटें।
शीर्ष अदालत ने कहा कि, सीआरपीसी की धारा-327 के अंतर्गत या मामले में पीड़ित व्यक्ति या कोई अन्य गवाह, जब अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न और हिंसा के अनुभव के बारे में गवाही दे रहा हो तो कैमरे के सामने कार्यवाही की अनुमति होनी चाहिए। इसके अलावा, एक स्क्रीन लगाने की भी इजाजत दी जानी चाहिए जिससे कि यह सुनिश्चित हो सके कि पीड़ित महिला गवाही देते वक्त आरोपी को ना देखे।
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