India News(इंडिया न्यूज़) Delhi AIIMS: छोटी उम्र में आंखों की रोशनी खोने के बाद भी अंशु ने हार नहीं मानी। सीखने का जज्बा उसे दिल्ली के एक दृष्टिबाधित विद्यालय तक ले आया। यहां दो साल की मेहनत के बाद उसमें काफी सुधार हुआ। इसी बीच वह एम्स के एक अध्ययन का हिस्सा भी बनी। एम्स ने 54 तरह के दृष्टिबाधित के लिए सहायक प्रौद्योगिकी से होने वाले फायदे पर एक अध्ययन किया। इस अध्ययन के लिए लाजपत नगर और विकासपुरी स्थित एक-एक दृष्टिबाधित विद्यालय को चुना गया।
इनमें से एक स्कूल लड़कों का और दूसरा लड़कियों का था। अध्ययन से पूर्व बच्चों की सीखने की कला और उनके कौशल विकास की समीक्षा की गई। समीक्षा के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से 54 तरह के सहायक प्रौद्योगिकी उपलब्ध करवाए गए। इनमें ब्रेल, बोलने वाली छड़ी और घंडी, टाइप राइटर सहित अन्य उपकरण शामिल रहे। अध्ययन के दौरान बच्चों में सीखने की कला, उनके कौशल विकास में काफी सुधार हुआ।
इस अध्ययन के संबंध में एम्स के डॉ. आरपी सेंटर के प्रोफेसर डॉ. सूरज सिंह सेनजम ने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि यदि बच्चों को सभी उपकरण उपलब्ध करवाए जाते हैं तो बच्चों में सीखने की गति बढ़ जाती है। यह सभी उपकरण बच्चों की जरूरतों के आधार पर तैयार हैं। जबकि कुछ समय पहले एम्स के ही एक अध्ययन में पाया गया था कि दृष्टिबाधित को पर्याप्त उपकरण उपलब्ध नहीं करवाए जा रहे, जिससे उनके सीखने की गति, कौशल विकास प्रभावित होता है। उन्होंने कहा कि अध्ययन के बाद सभी नेत्रहीन स्कूलों में विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत आवश्यक उपकरण उपलब्ध करवाने का सुझाव दिया है।
अध्ययन के दौरान आधे से अधिक छात्रों में दृष्टि तीक्ष्णता को सर्वोत्तम रूप से सुधारा गया। वहीं पाया गया कि बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जिन्हें दृश्य-आधारित सहायक प्रौद्योगिकी से लाभ होगा, और शेष छात्रों को दृश्य प्रतिस्थापन सहायक प्रौद्योगिकी से लाभ होगा। वहीं पाया गया कि 20.8 फीसदी छात्र जिनकी निकट दृष्टि में दिक्कत थी, उनमें बड़ी प्रिंट वाली पुस्तकों से फायदा होगा।
साल 2019-20 के तहत प्रमाण पत्र हासिल करने वाले बच्चों पर अध्ययन हुआ। इन छात्रों में से 25.7% रेटिना समस्याएं, 25.5% ग्लोब असामान्यताएं, 13.6% ऑप्टिक तंत्रिका शोष, 12% भेंगापन से पीड़ित थे। अध्ययन में शामिल छात्रों में पहचानी जाने वाली सामान्य नेत्र संबंधी समस्याएं थीं।