इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
Waqf Act : सुप्रीम कोर्ट के वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने वक्फ अधिनियम के कई प्रविधानों को चुनौती देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने इसमें अन्य धर्मों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए वक्फ कानून 1995 के प्रविधानों को चुनौती दिया है। उन्होंने यह मांग की है कि कोर्ट घोषित करे कि संसद को वक्फ और वक्फ संपत्ति के लिए वक्फ कानून 1995 बनाने का अधिकार ही नहीं है।
अश्वनी उपाध्याय ने कोर्ट से यह आदेश देने की मांग की है कि वक्फ एक्ट 1995 के तहत जारी कोई भी नियम, अधिसूचना, आदेश अथवा निर्देश हिंदू अथवा अन्य गैर इस्लामी समुदायों की संपत्तियों पर लागू नहीं होगा। उन्होंने कहा है कि इनमें वक्फ की संपत्ति को विशेष दर्जा दिया गया है जबकि ट्रस्ट, मठ और अखाड़े की संपत्तियों को वैसा दर्जा प्राप्त नहीं है।
याचिका में यह मांग की गई कि कोर्ट घोषित करे कि दो धार्मिक समुदायों के बीच के संपत्ति विवाद को ट्रिब्युनल या अर्ध न्यायिक मंच (क्वासी ज्युडिशियल फोरम) तय नहीं कर सकते। ऐसे विवाद सिर्फ अदालत द्वारा ही निपटाए जाएंगे। याचिका में वक्फ कानून की धारा 4, 5, 8, 9 (1) (2) (ए), 28, 29, 36, 40, 52, 54, 55, 89, 90, 101 और 107 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। इसके साथ ही यह कहा गया है कि ये धाराएं संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25, 26, 27 और 300ए का उल्लंघन करती हैं। इसके अलावा वक्फ कानून की धारा 6, 7, 83 को भी निरस्त करने की मांग की गई है।
याचिका में यह मांग की गई है कि वक्फ कानून के तहत वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति दर्ज करने की असीमित शक्ति दी गई है। इसमें हिंदू और गैर इस्लामिक समुदाय को अपनी निजी और धार्मिक संपत्तियों को सरकार या वक्फ बोर्ड द्वारा जारी वक्फ सूची में शामिल होने से बचाने के लिए कोई नियम नहीं बनाया गया है। यह हिंदू और अन्य गैर इस्लामिक समुदायों के साथ भेदभाव है।
वक्फ कानून की धारा-40 वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति के वक्फ संपत्ति होने या नहीं होने की जांच करने का विशेष अधिकार देती है। अगर वक्फ बोर्ड को यह विश्वास होता है कि किसी ट्रस्ट या सोसाइटी की संपत्ति वक्फ संपत्ति है तो बोर्ड उस ट्रस्ट व सोसाइटी को कारण बताओ नोटिस जारी कर सकती है कि क्यों न इस संपत्ति को वक्फ संपत्ति की तरह दर्ज कर लिया जाए। (Waqf Act)
इस बारे में बोर्ड का फैसला अंतिम होगा। उस फैसले को सिर्फ वक्फ ट्रिब्युनल में ही चुनौती दी जा सकती है। इस तरह ट्रस्ट और सोसाइटी की संपत्ति वक्फ बोर्ड की इच्छा पर निर्भर रहता है कि वह उक्त संपत्ति को अपने अंदर समाहित कर ले या उस व्यक्ति या संस्था को ही रहने दे।
याचिका में कहा गया है कि आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एपी सज्जादा नसीन बनाम भारत सरकार के केस में 2009 में बताया था कि देशभर में वक्फ की करीब तीन लाख संपत्तियां दर्ज हैं जो करीब चार लाख एकड़ की जमीन है। इससे वक्फ देश में रेलवे और डिफेंस के बाद तीसरे नंबर पर सबसे बड़ा जमीन का मालिक है।
याचिका में यह स्पष्ट रूप से आरोप लगाया गया है कि गत 10 साल में वक्फ बोर्ड ने तेजी से दूसरों की संपत्तियों पर कब्जा करके उसे वक्फ संपत्ति घोषित किया है। इस समय वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम आॅफ इंडिया की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार जुलाई, 2020 तक कुल 6,59,877 संपत्तियां वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज हैं।
जिसमें देशभर की करीब आठ लाख एकड़ जमीन है। याचिकाकर्ता का कहना है कि वक्फ बोर्ड को अवैध कब्जे हटाने का विशेष अधिकार है। वक्फ संपत्ति का कब्जा वापस लेने के लिए लिमिटेशन यानी समयसीमा से छूट है। जबकि ट्रस्ट, मठ, मंदिर, अखाड़ा आदि धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधक, सेवादार, महंत और प्रबंधन व प्रशासन देखने वालों को इस तरह का अधिकार और शक्तियां नहीं मिली हुई हैं। जो भेदभाव को दर्शाता है। (Waqf Act)
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