India News(इंडिया न्यूज़), Vishnu Ji: हिंदू धर्मग्रंथों में कई देवी-देवताओं के स्वरूप और चरित्र का वर्णन किया गया है। हर देवी-देवता के स्वरूप, आचार-व्यवहार के अनुसार उनका अपना वाहन होता है। प्रत्येक देवता अपने वाहन के माध्यम से प्रकृति के एक विशिष्ट गुण का प्रतिनिधित्व करता है। माँ शेरावाली का वाहन सिंह है, भगवान गणेश का वाहन चूहा है, देवी सरस्वती का वाहन हंस है, कार्तिकेय का वाहन मोर है और भगवान शिव का वाहन नंदी है, इसी प्रकार भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ है।
पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं ने स्वर्ग में युद्ध के बाद राक्षसों से जो अमृत कलश प्राप्त किया था, उसे गरुड़ ने देवताओं से छीन लिया था क्योंकि वह अपनी माँ को कद्रू की दासता से मुक्त कराना चाहता था। गरुड़ अमृत कलश लेकर कद्रू के पास पहुंचे और उससे बोले मैं अपने वचन के अनुसार अमृत कलश ले आया हूँ। अब आप अपने वचन से मेरी माता को मुक्त कर दीजिये। कद्रू ने उसी क्षण विनता को अपने वचन से मुक्त कर दिया और अगली सुबह नागों को अमृत पिलाने का निर्णय लेकर वहां से चली गई। रात्रि में उचित अवसर देखकर इन्द्र ने अमृत कलश उठा लिया और उसे उसी स्थान पर लौटा दिया।
अगली सुबह जब नाग वहां पहुंचा तो अमृत कलश गायब देखकर दुखी हुआ। वह उस कुशा को चाटने लगा जिस पर अमृत कलश रखा हुआ था, जिससे उसकी जीभ दो भागों में फट गई। गरुड़ की माता के प्रति भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु गरुड़ के सामने प्रकट हुए और कहा – “हे पक्षीराज, मैं तुम्हारी माता के प्रति भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हूँ! मैं चाहता हूँ कि अब से तुम मेरे वाहन के रूप में मेरे साथ रहो।” गरुड़ ने कहा- “मैं बहुत भाग्यशाली हूं प्रभु कि आपने स्वयं मुझे अपना वाहन स्वीकार किया। आज से मैं हर पल आपकी सेवा में रहूंगा और आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा।” इस प्रकार उसी दिन से पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन के रूप में प्रयुक्त होने लगे।
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