इंडिया न्यूज (इंडिया न्यूज), Identify Fake Medicines: बीमार पड़ने पर हर कोई दवा का सेवन हैं। कुछ लोग केमिस्ट (मेडिकल स्टोर) से दवा लेते हैं, जबकि कई लोग पहले डॉक्टर से सलाह लेते हैं और फिर नुस्खे के आधार पर दवा खरीदते हैं। देखा जाए तो यह सही तरीका है, लेकिन आजकल बाजार में नकली दवाएं भी बेची जा रही हैं। खासतौर पर ऑनलाइन दवा खरीदने पर यह धोखाधड़ी ज्यादा हो रही है।
ये सेहत के साथ खिलवाड़ है।साथ ही कभी-कभी बीमारी इतनी बढ़ जाती है कि इसे कंट्रोल करना डॉक्टर के हाथ में भी नहीं होता है। तो चलिए आज ‘बात आपके काम की’ में जानते हैं कि असली और नकली दवाओं की पहचान कैसे करें? इसकी विधि क्या है?
दरअसल, जब भी आप दवा खरीदने जाएं तो याद रखें कि असली दवाओं पर एक क्यूआर कोड छपा होता है। यह एक विशेष प्रकार का अनोखा कोड प्रिंट होता है। इसमें दवा और उसकी सप्लाई चेन के बारे में पूरी जानकारी है. जैसे- दवा की निर्माण तिथि और स्थान क्या है? इसका निर्माण कहां किया गया और कहां-कहां सप्लाई किया गया? इस सूची में एंटीबायोटिक्स, दर्द निवारक गोलियाँ, एंटी-एलर्जी दवाएं शामिल हैं।
QR कोड स्कैन करते ही आपके सामने सारी जानकारी आ जाएगी. इसलिए जब भी आप किसी मेडिकल स्टोर से दवा खरीदें तो यह जांच लें कि आपकी दवा पर यह कोड है या नहीं। अगर किसी दवा पर कोई कोड नहीं है तो इसका मतलब साफ है कि वह दवा नकली है।
कई बार लोगों को यह भ्रम होता है कि नकली दवा बनाने वाले लोग दवा का क्यूआर कोड भी कॉपी कर सकते हैं। तो हम आपको बता दें कि ऐसा नहीं है।
दवा पर बना यूनिक कोड एक उन्नत संस्करण है और सेंट्रल डेटाबेस एजेंसी द्वारा जारी किया जाता है। इसके अलावा हर दवा के साथ यूनिक क्यूआर कोड भी बदला जाता है। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि किसी दवा पर बना बारकोड केवल एक बार इस्तेमाल के लिए होता है और इसे कॉपी करना किसी के लिए भी संभव नहीं है।
आपको बता दें कि नियमों के मुताबिक 100 रुपये से अधिक कीमत वाली सभी दवाओं पर क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य है। ऐसे में अगर दवा पर बारकोड न हो तो उसे खरीदने से बचना ही बेहतर है।