Govardhan puja 2022: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा मनाया जाता है। बता दे कि इस साल 26 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण के लिए 56 प्रकार के भोग तैयार किए जाते हैं, पर बहुत कम लोग ही जानते हैं कि पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को एक श्राप दिया था, जिस कारण पर्वत प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं।
बता दे पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार यात्रा करते हुए पुलस्त्य ऋषि गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे, तो इसकी सुंदरता देखकर वे मंत्रमुग्ध हो गए। जिसके बाद ऋषि ने द्रोणाचल पर्वत से निवेदन किया कि आप अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए, मैं उसे काशी में स्थापित कर वहीं रह कर पूजन करुंगा। द्रोणाचल यह सुनकर दुखी हो गए। लेकिन गोवर्धन पर्वत ने जाने से पहले एक शर्त रखी है। जिसमें कहा कि आप मुझे जहां रख देंगे मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। पुलस्त्य ने गोवर्धन की यह बात मान ली।
बता दे कि रास्ते में ब्रज आया, उसे देखकर गोवर्धन सोचने लगे कि भगवान श्रीकृष्ण-राधा जी के साथ बहुत सी लीलाएं करेंगे। तब उनके मन में यह विचार आया कि वह यहीं रूक जाएं। यह सोचकर गोवर्धन पर्वत पुलस्त्य ऋषि के हाथों में और अधिक भारी हो गया। इसके बाद ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को ब्रज में रखकर विश्राम करने लगे। ऋषि ये बात भूल गए थे कि उन्हें गोवर्धन पर्वत को कहीं रखना नहीं है।
कुछ देर बाद ऋषि पर्वत को वापस उठाने लगे लेकिन गोवर्धन ने कहा कि ऋषिवर अब मैं यहां से कहीं नहीं जा सकता। मैंने आपसे पहले ही कहा था कि आप मुझे जहां रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। तब पुलस्त्य उसे ले जाने की हठ करने लगे, लेकिन गोवर्धन वहां से नहीं हिले।
तब ऋषि ने क्रोधित होकर उसे श्राप दिया कि तुमने मेरे मनोरथ को पूर्ण नहीं होने दिया। अत: आज से प्रतिदिन तिल-तिल कर तुम्हारा क्षरण होता जाएगा। फिर एक दिन तुम धरती में समाहित हो जाओगे। तभी से गोवर्धन पर्वत तिल-तिल करके धरती में समा रहा है। कहा जाता है कि कलियुग के अंत तक यह धरती में पूरा समा जाएगा।
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी पर्वत पर कई लीलाएं की थीं। इसी पर्वत को इन्द्र का मान मर्दन करने के लिए उन्होंने अपनी सबसे छोटी उंगली पर तीन दिनों तक उठा कर रखा था।
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