India News (इंडिया न्यूज़), Chaudhary Charan Singh : केंद्र सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला किया है। इसकी जानकारी खुद पीएम मोदी ने दी। पीएम मोदी ने कहा कि ये हमारी सरकार का सौभाग्य है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है। यह सम्मान देश के प्रति उनके अतुलनीय योगदान को समर्पित है। उन्होंने अपना पूरा जीवन किसानों के अधिकारों और कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था।
चरण सिंह का जन्म 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त की। कानून की डिग्री लेने के बाद चौधरी चरण सिंह ने अपने पेशे की शुरुआत गाजियाबाद से की। 1929 में चौधरी चरण सिंह मेरठ आये और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गये। वह पहली बार 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए और 1946, 1952, 1962 और 1967 में विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
चौधरी चरण सिंह 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा एवं जन स्वास्थ्य, न्याय, सूचना समेत कई विभागों में काम किया। जून 1951 में, उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया और न्याय और सूचना विभागों का प्रभार दिया गया। बाद में 1952 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने। अप्रैल 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, तब उनके पास राजस्व और परिवहन विभाग का प्रभार था।
चौधरी चरण सिंह सी.बी.गुप्ता के मंत्रिमंडल में गृह और कृषि मंत्री (1960) थे। उसी समय, वह सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में कृषि और वन मंत्री (1962-63) थे। उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया और 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का कार्यभार संभाला। कांग्रेस विभाजन के बाद, फरवरी 1970 में, वह कांग्रेस पार्टी के समर्थन से दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालाँकि, 2 अक्टूबर 1970 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर उत्तर प्रदेश की सेवा की और उन्हें एक सख्त नेता के रूप में जाना जाता था, जो प्रशासन में अक्षमता, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करते थे।
1951 में वे उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में न्याय एवं सूचना मंत्री बने। इसके बाद 1967 तक उनकी गिनती राज्य कांग्रेस के तीन प्रमुख अग्रिम पंक्ति के नेताओं में होती रही। भूमि सुधार कानूनों के लिए काम करते रहे। किसानों के लिए उन्होंने 1959 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में पंडित नेहरू का भी विरोध करने से परहेज नहीं किया।
चौधरी चरण सिंह को फिल्मों से नफरत थी। उन्होंने शायद अपने जीवन में कभी कोई फिल्म भी नहीं देखी। उन्होंने इसे समय की बर्बादी माना और शायद सांस्कृतिक तौर पर भी उन्हें यह पसंद नहीं आया। उन्हें फिल्में देखने में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। उन्हें यह भी पसंद नहीं था कि उनका परिवार कभी सिनेमा हॉल में फिल्म देखने जाए।
वर्ष 1967 में चौधरी चरण सिंह ने खुद को कांग्रेस से अलग कर लिया और उत्तर प्रदेश के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। भारतीय लोक दल के नेता के रूप में, वह जनता गठबंधन में शामिल हुए जिसमें उनकी पार्टी सबसे बड़ी घटक थी। लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि 1974 के बाद से वह गठबंधन में अलग-थलग पड़ गए थे और जब जयप्रकाश नारायण ने मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री के रूप में चुना तो उन्हें बहुत निराशा हुई। और फिर जब 1979 में प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। चौधरी चरण सिंह का 84 वर्ष की आयु में 29 मई 1987 को दिल्ली में निधन हो गया। केंद्र सरकार ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला किया है।