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Janmashtami 2022: जानिए कब है जन्माष्टमी, क्या है सही तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

• LAST UPDATED : August 16, 2022

Janmashtami 2022: हिंदू धर्म के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद के अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। लेकिन कई बार ऐसी स्थिति बन जाती है कि अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र अलग-अलग दिन पड़ते हैं। जिससे जन्माष्टमी का त्योहार मनाने में कृष्ण भक्तों को काफी असमंजस का सामना करना पड़ता है। इस बार भी कृष्ण जन्म की तिथि और नक्षत्र एक साथ नहीं मिल रहे हैं। 18 अगस्त को रात्रि 9 बजकर 21 मिनट के बाद अष्टमी तिथि का आरंभ हो जाएगी, जो 19 अगस्त को रात्रि 10 बजकर 59 मिनट तक रहेगी।

कब है रोहिणी नक्षत्र

कान्हा का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था लेकिन खास बात ये है कि इस साल 18 और 19 अगस्त दोनों ही दिन रोहिणी नक्षत्र का संयोग नहीं बन रहा है। जन्माष्टमी इस साल बेहद शुभ योग में मनाई जाएगी। कृष्ण के जन्मोत्सव पर वृद्धि और ध्रुव नामक दो शुभ योग बन रहे हैं। मान्यता है कि वृद्धि योग में बाल गोपाल संग मां लक्ष्मी स्वरूपा राधा जी की पूजा करने से घर में समृद्धि आती है।

जन्माष्टमी की पूजन विधि

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान आदि कर पूरे दिन व्रत करें और फलाहार लें। इसके बाद भगवान कृष्ण के बाल स्वरुप बाल गोपाल को गंगाजल व दूध से स्नान कराएं और फिर नए वस्त्र पहनाएं और साथ ही उनका श्रृंगार भी करें। इस दिन भगवान बाल गोपाल को माखन मिश्री का भोग लगाया जाता है। साथ ही पंजीरी का प्रसाद बनता है और गोपाल जी को झूला झूलाने की भी परंपरा है।

मथुरा-वृंदावन में कब रहेगी जन्माष्टमी

मथुरा-वृंदावन में सालों से पंरपरा रही है कि भगवान कृष्ण जन्माष्टमी के जन्मोत्सव सूर्य उदयकालिक और नवमी तिथि विद्धा जन्माष्टमी मनाने की परंपरा है। गृहस्थ संप्रदाय के लोग कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं और वैष्णव संप्रदाय के लोग कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं। जन्माष्टमी को मनाने वाले दो अलग-अलग संप्रदाय के लोग होते हैं, स्मार्त और वैष्णव। इनके विभिन्न मतों के कारण दो तिथियां बनती हैं। स्मार्त वह भक्त होते हैं जो गृहस्थ आश्रम में रहते हैं। यह अन्य देवी-देवताओं की जिस तरह पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं, उसी प्रकार कृष्ण जन्माष्टमी का धूमधाम से उत्सव मनाते हैं। उसी प्रकार वैष्णव जो भक्त होते हैं वे अपना संपूर्ण जीवन भगवान कृष्ण को अर्पित कर देते हैं। उन्होंने गुरु से दीक्षा भी ली होती है और गले में कंठी माला भी धारण करते हैं। जितनी भी साधु-संत और वैरागी होते हैं, वे वैष्णव धर्म में आते हैं।

 

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