Sunday, July 7, 2024
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Kashmiri Pandit:

दिल्ली: राजधानी में अब कश्मीरी पंडित दिल्ली सरकार के खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी में हैं। लगातार बाइफरकेशन लागू करने की मांग को लेकर उनका कहना है कि दिल्ली हाई कोर्ट की तरफ 3 साल पहले आदेश जारी होने के बाद भी दिल्ली सरकार बाइफरकेशन को मंजूरी नहीं दे रही है।

नहीं जोड़ा जाता सदस्यों का नाम

32 साल पहले 1990 में कश्मीर घाटी से पलायन कर दिल्ली आ बसे कश्मीरी पंडितों का कहना है कि परिवार अपनी मर्जी से आर्थिक सहायता छोड़ तो सकते हैं, लेकिन परिवार के किसी भी सदस्य का नाम इसमें जोड़ा नहीं जा सकता है। उनकी मांग है कि इन दस्तावेजों में परिवार के सदस्यों के नाम जोड़ने की सुविधा भी मिलनी चाहिए।

कोर्ट में केस करने वालों का तर्क

मामले में कश्मीरी पंडितों का कहना है कि 1990 में दिल्ली आए कश्मीरी पंडितों में कई ऐसे हैं जिनके बच्चों तक की शादी हो चुकी है, लेकिन आज भी उनका नाम दस्तावेजों में नहीं जोड़ा गया है। कुछ ऐसा ही 90 के दौर में अपने 2 भाइयों और माता-पिता के साथ कश्मीर से आए मनोज कुमार कौल के साथ भी हुआ है। उनका कहना है कि उनके भाइयों की शादी के बाद उन्हें सिर्फ उनके हिस्से की मदद मिलती है, जबकि घर में पत्नी और 2 बच्चे भी हैं। ऐसे में इतने कम पैसे के चलते बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च चला पाना काफी मुश्किल काम है।

बाइफरकेशन की मांग

किसी चीज को अलग-अलग भागों में बांटना बाइफरकेशन कहलाता है, और दिल्ली में रह रहे कश्मीरी पंडित अपने कश्मीरी पहचान वाले दस्तावेजों के बाइफरकेशन या विभाजन की मांग कर रहे हैं। दिल्ली के डिविजन कमिश्नर (रेवेन्यू) ऑफिस से मिली जानकारी के मुताबिक दिल्ली में रह रहे एक चार सदस्य वाले कश्मीरी पंडित परिवार को इस समय 13 हजार रुपये की आर्थिक मदद मिलती है।

प्रति सदस्य मिलते हैं 3250 रूपये

वहीं अगर सदस्यों की संख्या कम होती है तो प्रति सदस्य 3250 रुपये दिए जाते हैं, लेकिन अगर सदस्यों की संख्या बढ़ती है तो अधिकतम 13 हजार रु. देने का ही प्रावधान है। जिसमें प्रति व्यक्ति 1 हजार रु. दिल्ली सरकार तो बाकी का भुगतान केंद्र सरकार करती है। जम्मू-कश्मीर में इसे 2008 में लागू कर दिया गया था। लेकिन यहां मामला दिल्ली सरकार के पास ही लंबित है। दिल्ली के डिविजन कमिश्नर (रेवेन्यू) केआर मीणा ने मामले में जल्द कार्रवाई करने की बात कही है।

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