Saturday, July 6, 2024
Homeनेशनलदल-बदल कानून को लेकर EC ने SC में दाखिल किया हलफनामा कहा...

वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दलबदल विरोधी कानून’ पारित किया गया और इसे संविधान की दसवीं अनुसूची में जोड़ा गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में दलबदल की कुप्रथा को समाप्त करना था

चुनाव आयोग (Election Commission) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक हलफनामा दाखिल किया. आयोग ने कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा, कि ‘दलबदल कानून से संबंधित मामले में केंद्र सरकार (Central Government) ही निर्णय ले सकती है. वही इसके लिए उचित ऑथिरिटी है. इस मामले में शामिल मुद्दा संविधान(Constitition) के अनुच्छेद 191(1)(ई) की व्याख्या से संबंधित है. इसका अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग के कार्यक्षेत्र और चुनाव के संचालन से कोई संबंध नहीं है.’

चुनाव आयोग ने अनुच्छेद 324 का हवाला देते हुए कहा कि ‘चुनाव आयोग वह निकाय है जो संसद, राज्य विधानमंडलों और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के चुनावों के संचालन का निर्देशन और नियंत्रण करता है’  आपको बता दें कि कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 191(क)(E) और दसवीं अनुसूची का उल्लंघन करने पर विधायकों और सांसदों को पांच साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की है.

आपको बता दे कि दलबदल कानून को लेकर अलग अलग नेताओं के तरफ से अलग प्रतिक्रिया आते रहती है. कुच दिन पहले इस कानून को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बड़ी टिप्पणी की थी. गहलोत ने कहा था कि पार्टी बदलना संसदीय लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है, ऐसी प्रवृति पर रोक लगनी चाहिए.

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क्या है दल-बदल कानून-

वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दलबदल विरोधी कानून’ पारित किया गया और इसे संविधान की दसवीं अनुसूची में जोड़ा गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में दलबदल की कुप्रथा को समाप्त करना था। इस कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है यदि:-

  • कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
  • किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के रुख के विपरीत वोट किया जाता है।
  • एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है।
  • छह महीने की अवधि के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है
  • कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है
  • कानून के अनुसार, सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार देने संबंधी निर्णय लेने की शक्ति है। अध्यक्ष जिस दल से है, यदि शिकायत उसी दल से संबंधित है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है

 

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