देश में समलैंगिक विवाह को बैध बाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई जारी है. समलैंगिक विवाह को लेकर केंद्र सरकार का रूख पहले से ही साफ है, केंद्र सरकार इसे भारतीय संस्कृति के खिलाप मानती है, तो वही इस्लाम के तरफ से भी इसका विरोध किया जा रहा है. जमीयत उलेमा ए हिन्द के वकील के तौर पर कपिल सिब्बल भी कोर्ट में उपलब्ध हैं.
केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, कि हम सुनवाई के पक्ष में नहीं है. हम इसका विरोध कर रहे है, क्योंकि यह विषय संसद के अधिरकार क्षेत्र में आता है. कोर्ट शादी की नई व्यवस्था नहीं बना सकता.
चीफ जस्टिस– हमें पहले याचिकाकर्ताओं को सुनने दीजिए. आप अपनी बात बाद में रख सकते हैं.
तुषार मेहता– पहले हमारी आपत्ति पर विचार करना बेहतर होगा, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से सुनवाई में मौजूद कपिल सिब्बल ने भी मेहता की बात का समर्थन करते हुए कहा, यह मामला पर्सनल लॉ से भी जुड़ा है. पर्सनल लॉ से जुड़ी व्यवस्थाएं इससे प्रभावित होंगी.
तुषार मेहता– किसी भी याचिकाकर्ता को सुनने से पहले मेरी शुरुआती आपत्ति को सुनिए. मैं अभी केस के मेरिट पर कुछ नहीं बोलूंगा. सिर्फ इस पर बात करूंगा कि सुनवाई हो या नहीं.
सीजेआई– हमें तय करने दीजिए कि सुनवाई कैसे होगी. हम शुरू में याचिकाकर्ता पक्ष को थोड़ी देर सुनना चाहते हैं.
तुषार मेहता– फिर मुझे समय दीजिए. सरकार तय करेगी कि उसको कितना हिस्सा लेना है और क्या कहना है?
सीजेआई– हम सुनवाई नहीं टालेंगे
तुषार मेहता– 5 लोग चाहे जितने विद्वान हों, मिल कर तय नहीं कर सकते कि दक्षिण भारत का एक किसान, पूर्वी भारत का एक व्यापारी इस पर क्या सोचता है?
याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, हमें कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से नहीं रोका जा सकता. मुझे अपनी बात रखने दीजिए. याचिकाकर्ता पक्ष के दूसरे वकील विश्वनाथन ने तर्क दिया, हम इसे संसद पर नहीं छोड़ सकते ये मौलिक अधिकारों का मामला है.
इस मामले में अभी भी सुनवाई जारी है…