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जानें, पहले दिन जन्माष्टमी मनाने वाले स्मार्त दूसरे दिन वाले वैष्णव कौन हैं?

India News (इंडिया न्यूज) : श्री कृष्ण जन्माष्टमी हिंदूओं का एक प्रमुख त्योहार है। जिसे कृष्ण जन्माष्टमी, गोकुलाष्टमी, कृष्णाष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है। इस बार जन्माष्टमी 6 और 7 सितंबर को मनाई जा रही है। बता दें, इस दिन विष्णु के आठवें अवतार, भगवान कृष्ण पैदा हुए थे। भगवान कृष्ण के भक्त इस दिन उनकी पूजा करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए मंदिरों में आते हैं। वैदिक कालक्रम के अनुसार, इस वर्ष भगवान कृष्ण का 5250वां जन्मदिन मनाया जा रहा है। ऐसे में हम पको बताएंगे हर वर्ष दो दिन क्यों मनाई जाती है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी।

जन्माष्टमी की इतिहास

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, विष्णु के आठवें अवतार, भगवान कृष्ण – देवकी और वासुदेव के पुत्र – का जन्म मथुरा के राक्षस राजा कंस को नष्ट करने के लिए जन्माष्टमी पर हुआ था। कंस, देवकी का भाई था। राक्षस राजा ने अपनी बहन और उसके पति को पकड़ लिया था और उन्हें जेल में डाल दिया था ताकि वह उनके 7वें बेटे यानि को भी मार सके। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

देवकी के सातवें बच्चे, बलराम के जन्म के समय, भ्रूण रहस्यमय तरीके से देवकी के गर्भ से राजकुमारी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित हो गया। वहीं, जब उनके आठवें बच्चे, कृष्ण का जन्म हुआ, तो पूरा महल गहरी नींद में सो गया। जादुई तरीके से जेल के दरवाजे खुल गए और वासुदेव ने बच्चे को बचाकर वृन्दावन में नंद बाबा और यशोदा के घर पहुंचा दिया। आदान-प्रदान करने के बाद, वासुदेव एक बच्ची के साथ महल में लौट आए और उसे कंस को सौंप दिया। जब दुष्ट राजा ने बच्ची को मारने की कोशिश की, तो वह दुर्गा में बदल गई और उसे उसके विनाश के बारे में चेतावनी दी। इस तरह कृष्ण वृन्दावन में बड़े हुए और बाद में अपने मामा कंस का वध किया। भगवान कृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

कौन हैं स्मार्त और वैष्णव ?

बता दें, सनातन धर्म में कई तरह के मतों को मानने वाले लोग हैं। इन अनुयायियों को उनकी भक्ति, विश्वास और पूजा विधि के हिसाब से वैष्णव, शैव, शाक्त, स्मार्त और वैदिक के रूप में जाना जाता है। वैष्णव वे हैं, जो भगवान विष्णु को ही सबसे बड़ा देव मानते हैं। शैव शिव को ही परम सत्ता मानते हैं। वहीं, शाक्त, देवी को परम शक्ति मानते हैं। स्मार्त वे हैं, जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं और सभी देवी-देवताओं की समान रूप से पूजा करते हैं।

गृहस्थ भी स्मार्त ही हैं, क्योंकि वे भी सभी देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। भगवान कृष्ण को वैष्णव और स्मार्त समान रूप से मानते हैं, लेकिन जन्माष्टमी मनाने को लेकर दोनों अलग-अलग दिन का चुनाव करते हैं। इसका रहस्य भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी में छिपा है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद की अष्टमी तिथि को रोहणी नक्षत्र में, आठवें मुहूर्त में रात्रि के 12 बजे, यानी शून्यकाल में हुआ था। यानी, अष्टमी तिथि के आठवें मुहूर्त में रोहणी नक्षत्र में ही जन्माष्टमी मनाई जानी चाहिए। इस बार गृहस्थ 6 सितंबर को, जबकि संत 7 सितंबर को जन्माष्टमी मन रहें हैं।

also read ; क्यों जन्माष्टमी मनाई जाती है? जानिए इसका पौराणिक इतिहास

Ashish kumar Rai

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