India News(इंडिया न्यूज़), Bhopal Gas Tragedy: 37 साल के परिवार में केवल दो लोग बचे हैं, भोपाल गैस त्रासदी की 39वीं बरसी। गैस निकलने के अगले दिन सब कुछ सामान्य हो गया था, फिर भी अफवाहें फैलने लगीं। लोग तरह-तरह की अफवाहें फैलाने लगे जिससे स्थिति गैस निकलने वाले दिन से भी अधिक भयावह हो गई, जिसके कारण कई लोग भोपाल छोड़कर आसपास के शहरों में जाने लगे, लेकिन 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात को एक जोरदार विस्फोट हुआ। पूरे भोपाल में हंगामा मच गया। उस धमाके ने ऐसे जख्म दिए कि आज भी हजारों परिवार उनका इलाज ढूंढ रहे हैं, जिनके जले हुए दामन इस बात के गवाह हैं। उस रात यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली करीब 40 टन जहरीली एमआईसी गैस ने भयानक हादसा कर दिया था।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गैस के असर से शहर में 15 हजार लोगों की मौत हो गई और लाखों लोग घायल हो गए। लोग बेतहाशा अपने घरों से बाहर भाग रहे थे। जगह-जगह लाशों के ढेर लगे थे, कोई चीख रहा था, कोई रो रहा था। जिन लोगों ने उस रात को देखा था वे आज भी डर से कांप उठते हैं।
गैस पीड़ितों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली रशीदा बी, जो खुद एक गैस पीड़ित हैं और गैस त्रासदी में अपने परिवार के कई सदस्यों को खो चुकी हैं, कहती हैं कि 1984 से पहले हमें नहीं पता था कि यहां यूनियन कार्बाइड नाम की कोई चीज है और इसलिए यह कुछ गैस है। 2 दिसंबर 1984 की रात हम सोने जा रहे थे। मैं सोने ही वाला था कि बाहर से आवाज आने लगी, भागो, भागो, सब मर जायेंगे।
जब हमारी देवरानी का बेटा बाहर गया तो उसने देखा कि लोग सैलाब की तरह दौड़े चले आ रहे हैं। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। हमारा संयुक्त परिवार था जिसमें 37 लोग थे। सर्दियों के दिन थे। सभी लोग उठकर भागने लगे। हम भी बाहर आ गए और आधा किलोमीटर भी नहीं जा पाए कि हमारी आंखें बड़ी हो गईं। ऐसा लगा जैसे मेरी छाती में आग लग गयी हो।
गैस पीड़ितों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले गैस पीड़ित संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने 35 साल से अधिक समय तक भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए लड़ने के बाद इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। लेकिन न तो मुतस्रीन को कोई मुआवज़ा मिला, न कोई इलाज मिला और न ही कंपनी को कोई सज़ा मिली। 39 साल बाद जूनियर कार्बाइड कंपनी को कोर्ट में पेश होने के लिए बुलाया गया है, लेकिन उनके लोग आने से बच रहे हैं और तारीख बढ़ाई जा रही है।
वे लोग भाग्यशाली थे जो उस रात या दो-चार दिन बाद मारे गए। जो बदकिस्मत थे वे आज भी जीवित हैं और थोड़ा-थोड़ा करके मर रहे हैं। जिनके उस समय बच्चे थे और बाद में उनकी शादी हो गई, अब उनके बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं। कोई देखने वाला नहीं है। सरकार ने मुआवजे के नाम पर धोखा दिया है। 25-25 हजार रुपए का मुआवजा दिया गया है, वह भी 7 साल तक 200 रुपए प्रति माह के हिसाब से। फिर बाद में 10,400 रुपये दे दिए गए। यह संपूर्ण मुआवज़ा है जिसके बाद फिर कभी कोई सुनवाई नहीं होती। अस्पताल के लिए भवन तो बना दिया गया है, लेकिन इसमें न तो डॉक्टर हैं और न ही दवाएं।सरकार आज तक यूनियन कार्बाइड से यह पता नहीं लगा पाई है कि इसका इलाज क्या है। लोगों को कैसे बचाया जाए।
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