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चुनाव में कितनी बढ़ जाती है डीएम की पावर? जानिए यहाँ

• LAST UPDATED : March 17, 2024

India News Delhi (इंडिया न्यूज), Lok Sabha Elections 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का आज ऐलान हो गया है। इस बार लोकसभा चुनाव 7 चरणों में होंगे। इसके साथ ही देशभर में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। आचार संहिता लागू होने के बाद सरकार कोई नए फैसले नहीं ले पाएगी। देश में कहने के लिए तो सरकारें होंगी, लेकिन चुनाव परिणाम आने तक वह एक तरह से निष्क्रिय मोड में आ जाएंगी। चुनाव आयोग के दिशानिर्देश पर ही देश चलेगा।

DM बन जाता है जिला निर्वाचन अधिकारी

पीएम, सभी राज्यों के सीएम और सभी सरकारों के मंत्रियों को आयोग के निर्देशों का पालन करना होगा। इसके साथ ही देशभर के अधिकारी और भी ज्यादा पावरफुल हो जाएंगे। इन सबमें सबसे ज्यादा शक्तिशाली जिले के जिलाधिकारी हो जाएंगे। वह जिला निर्वाचन अधिकारी का पद ग्रहण कर लेंगे और उनकी मर्जी के बिना जिले में एक पत्ता भी नहीं खिलेगा। जिले में एक छोटे से छोटे कार्यक्रम से लेकर प्रधानमंत्री की रैली भी जिले के डीएम के आदेश के बिना संभव नहीं हो पाएगी। आइए इस लेख में समझते हैं कि आचार संहिता के दौरान जिलाधिकारी यानि की डीएम कितना पावरफुल हो जाते हैं।

चुनावों से पहले अधिकारियों का होता है रिव्यू

आचार संहिता लागू होने से पहले चुनाव आयोग अधिकारियों का एक रिव्यू करता है। रिव्यू के बाद आयोग अपनी राय सर्कार को देता और इसके बाद अधिकारियों के तबादले भी देखने को मिलते हैं। चुनाव आयोग का प्रयास रहता है कि चुनाव से पहले अधिकारी लेवल पर सभी मसलों को दुरस्त कर लिया जाए। वहीं चुनाव के दरम्यान कई बार आयोग के पास अधिकारियों की कम्प्लेन आती हैं तब भी वह उचित कार्रवाई करता है और जरुरत पड़ने पर तबादले करता है।

वहीं अगर अब बात करें कि आचार संहिता के दौरान जिलाधिकारी की पॉवर क्या होती है? आसान भाषा में कहें तो जिले का सबसे पावरफुल व्यक्ति वह ही हो जाता है। डीएम के काम में स्थानीय विधायक और सांसद तो छोड़िए सरकार भी दखल नहीं दे सकती है। जिले के अंदर होने वाली उम्मीदवारों की रैलियां बिना डीएम की मर्जी के संभव नहीं हो सकती हैं।

PM की रैलियों के लिए भी लेनी होती है डीएम की परमिशन

इस दौरान जिलाधिकारी की पॉवर का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि जिले में प्रधानमंत्री भी बिना इजाजत के रैली, जनसभा या रोड शो नहीं निकाल सकते। उम्मीदवारों को हर छोटी बड़ी रैली के लिए डीएम यानि जिला निर्वाचन अधिकारी के चक्कर लगाने पड़ते हैं। उम्मीदवार का खर्चा कितना करेगा, रैली कैसे करेंगे, क्या कर सकते हैं और क्या नहीं, यह तय करने की जिम्मेदारी भी डीएम के पास होती है। कम शब्दों में कहें तो आचार संहिता लगने के पहले पल से अगली सरकार के गठन तक जिले की सभी शक्तियां जिलाधिकारी यानि जिला निर्वाचन अधिकारी के पास हो होती हैं।

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