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Melting Tibetan Glaciers: तिब्बत में 22 हजार फीट की ऊंचाई पर मिले 33 वायरस, इनके संक्रमण का कोई इलाज नहीं

• LAST UPDATED : February 6, 2024

India News(इंडिया न्यूज़), Melting Tibetan Glaciers: तिब्बत में कई ग्लेशियर हैं जो तेजी से पिघल रहे हैं। वहां 15 हजार साल पुराना वायरस मिला है। यह वायरस भारत, चीन और म्यांमार जैसे देशों के लिए खतरा हो सकता है। इस प्राचीन वायरस संक्रमण का कोई इलाज नहीं है। ग्लेशियरों के पिघलने से ऊनी गैंडे, 40 हजार साल पुराने विशालकाय भेड़िये और 7।50 लाख साल पुराने बैक्टीरिया के उद्भव का पता चला है।

15 हजार साल पुराना वायरस

हाल ही में वैज्ञानिकों ने तिब्बती पठार पर मौजूद गुलिया आइस कैप के पास 15 हजार साल पुराने वायरस की खोज की है। वह भी एक प्रजाति का नहीं बल्कि कई प्रजातियों का है। ये किसी भी समय इंसानों के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।

1000 नई प्रजातियां मिलीं

पिछले साल तिब्बत के ग्लेशियरों में बैक्टीरिया की 1000 नई प्रजातियां पाई गईं। इनमें से सैकड़ों के बारे में वैज्ञानिकों को कुछ भी पता नहीं है। जलवायु परिवर्तन के कारण ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। अगर ये पिघलेंगे तो इनका पानी बैक्टीरिया के साथ चीन और भारत की नदियों में मिलेगा। जिसे पीने से लोग नई-नई बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं।

बैक्टीरिया एकदम नए

यूनिवर्सिटी ऑफ चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के वैज्ञानिकों ने तिब्बती पठार पर मौजूद 21 ग्लेशियरों के नमूने एकत्र किए थे। ये नमूने 2016 से 2020 के बीच एकत्र किए गए थे। इनमें बैक्टीरिया की 968 प्रजातियां पाई गईं। जिसमें 82% बैक्टीरिया बिल्कुल नये होते हैं। जिसके बारे में दुनिया भर के वैज्ञानिकों को कोई जानकारी नहीं है।

बैक्टीरिया वायरस इन नदियों से आ सकते हैं

ग्लेशियर और बर्फ की चादरें पृथ्वी की सतह का 10% भाग कवर करती हैं। उनके पास पृथ्वी पर पानी का सबसे स्वच्छ स्रोत है। तिब्बत को ‘एशिया का जल मीनार’ भी कहा जाता है। एशिया की कुछ सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली नदियाँ यहीं से निकलती हैं। इन नदियों के आसपास लोग घनी आबादी में रहते हैं। अगर इन नदियों के सहारे बैक्टीरिया चीन और भारत के आबादी वाले इलाकों तक पहुंच गया तो स्थिति बहुत खराब हो सकती है। इससे भारत और चीन को निश्चित तौर पर नुकसान होगा। इसके अलावा अन्य एशियाई देश भी इन नदियों के पानी का उपयोग कर सकेंगे।

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