India News(इंडिया न्यूज़), Surya Dev: हिंदू धर्म में पांच देवताओं में से, सूर्य देव कलियुग में प्रकट होने वाले एकमात्र देवता हैं। सूर्य देव के बारे में शास्त्र कहते हैं कि भगवान भास्कर जगत की आत्मा हैं। उनके तेज से सारा संसार प्रकाशित है। चन्द्रमा तथा अन्य तारों की चमक का कारण सूर्य देव की क्रिया ही है। ग्रहों में भी सूर्य देव को राजा कहा जाता है। लेकिन क्या आप एक बात जानते हैं कि ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा होते हुए भी राहु ग्रह उस पर ग्रहण लगा लेता है जिसके कारण सूर्य ग्रहण होता है। ऐसा क्यों है और राहु की सूर्य देव से क्या शत्रुता है? आज हम आपको इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा बताने जा रहे हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान देवता और राक्षस अमृत कलश पाने का प्रयास कर रहे थे। उसी समय उसमें से अमृत कलश निकला। उस समय भगवान विष्णु मोहिनी रूप धारण करके देवताओं को अमृत पिला रहे थे और दानव उनके मोहिनी रूप को देखकर आकर्षित हो रहे थे। ऐसे में स्वर्भानु नामक राक्षस ने चुपचाप देवताओं का रूप धारण कर लिया और उसी पंक्ति में खड़ा हो गया, जहां देवता अमृत पी रहे थे। जैसे ही भगवान विष्णु ने राक्षस स्वर्भानु को अमृत पिलाया, सूर्य और चंद्रमा देवताओं ने राक्षस की हरकतों को देख लिया।
सूर्य और चंद्र देव ने भगवान विष्णु से उन्हें तुरंत अमृत पिलाना बंद करने के लिए कहा और उन्हें स्वर्भानु के धोखे के बारे में बताया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और अमृत की बूंदें राक्षस के गले में जा चुकी थीं। जब भगवान विष्णु को इस बात का पता चला तो उन्होंने स्वर्भानु की गर्दन पर सुदर्शन चक्र से प्रहार किया। जैसे ही सुदर्शन चक्र स्वर्भानु की गर्दन पर लगा, उसका सिर धड़ से अलग हो गया। सिर से एक भाग राहु बन गया और शरीर के बाकी भाग से दूसरा भाग केतु बन गया। चूंकि स्वर्भानु ने अमृत चख लिया था इसलिए वह इन दोनों भागों में अमर हो गया। लेकिन सूर्य और चंद्रमा उनके शत्रु बन गए और इस कारण राहु ने सूर्य को और केतु ने चंद्रमा को ग्रहण लगा लिया और राहु और केतु ने सूर्य और चंद्रमा से बदला लिया।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित है। इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया न्यूज़ एक भी बात की सच्चाई का प्रमाण नहीं देता है।)