क्या आपने कभी किसी को अपने ही दोस्त को मारकर उसका मांस खाते देखा है?  नहीं, लेकिन यह सच है। आइए जानते है आखिर हुआ क्या था।

यह नाव पर सवार लोगों की सच्ची कहानी है, जिन्होंने खुद को जिंदा रखने के लिए एक-दूसरे को मार डाला और उनके शवों का मांस खाते रहे।

आज भी इसे समुद्री काली परंपरा कहा जाता है। यह कहानी यह भी सिद्ध करती है कि आदर्श परिस्थितियों में कोई भी मनुष्य भोजन के बिना जिंदा नहीं रह सकता।

यह घटना 20 नवंबर 1820 यानी करीब 203 साल पहले की है जब समुद्र में एक जहाज पर एक तामसिक शुक्राणु व्हेल ने हमला कर दिया था।

हादसे में जान बचाने के लिए 20 लोग तीन अलग-अलग छोटी नावों पर सवार हो गए। वे जानते थे कि समुद्र से जीवित बाहर निकलने के लिए उनके पास पर्याप्त भोजन नहीं है।

दो सप्ताह के बाद उनका भोजन ख़त्म हो गया। और कई नाविक मर गए। जब तीसरे दोस्त इसहाक की मौत हो गई तो बाकी दोस्त जिंदा रहने के लालच में एक-दूसरे की लाशें खाने लगे।

हत्या करने के लिए लॉटरी निकाली गई थी। जिसके बाद नाविकों ने अपने करीबी दोस्त की गोली मारकर हत्या कर दी और बाकी नाविक शव खाकर जिंदा रहे।

5 अप्रैल, 1821 को नाव पर अब एकमात्र नाविक जीवित बचा। उसके बाद से ऐसी घटना नहीं देखी गई।