India News Delhi(इंडिया न्यूज़), Bank Employee: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्मचारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। इस निर्णय के अनुसार, जब भी इन कर्मचारियों को अपने बैंक से ब्याज मुक्त या कम ब्याज दर पर लोन लेने का अधिकार होता है, तो उन्हें इस छूट के लिए बचा हुआ धन इनकम टैक्स के दायरे में आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में इनकम टैक्स एक्ट की धारा 17 (2)(viii) और इनकम टैक्स नियमावली की धारा 3(7)(i) की वैधता को स्वीकार किया है।
न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायाधीश दीपांकर दत्ता ने मंगलवार को ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (AIBOC) की याचिकाओं को खारिज करते हुए बैंक यूनियन की याचिका को भी खारिज कर दिया। उनके मुताबिक, बैंक कर्मचारियों के ब्याज-मुक्त या कम-ब्याज ऋण पर लगाए जाने वाले इनकम टैक्स के प्रावधानों की वैधता को उन्होंने स्वीकार किया। यह फैसला बैंक कर्मचारियों को आईटी अधिनियम के अन्तर्गत दिए गए सुविधाओं का लाभ उठाने की अनुमति देता है, जो ब्याज-मुक्त या कम-ब्याज ऋण के रूप में प्रदान किए जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि जब बैंक के कर्मचारी बिना किसी ब्याज के ऋण लेते हैं या फिर कम ब्याज दर पर ऋण लेते हैं, तो उन्हें मिलने वाला लाभ एक विशेष प्रकार का लाभ होता है। इसे ‘अनुलाभ’ कहा जाता है, और इसे कराधान के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
इनकम टैक्स विभाग के नियम के अनुसार, जब किसी बैंक के कर्मचारी शून्य ब्याज या कम ब्याज दर पर ऋण लेता है, तो उसका बचाया हुआ पैसा सालाना जितनी राशि होती है, उसकी तुलना भारतीय स्टेट बैंक या किसी अन्य बैंक से लिए गए ऋण की वही अमाउंट के साथी होती है, जिस पर मार्किट रेट लागू होती है। दोनों ऋणों के बीच के ब्याज का अंतर, वह राशि जिस पर आयकर लगाया जाता है।
न्यायमूर्ति खन्ना ने बताया कि ब्याज मुक्त या रियायती ब्याज दर पर ऋण को ‘अन्य अनुषंगी लाभ या सुविधा’ के रूप में माना जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि नियोक्ता के द्वारा ब्याज मुक्त या रियायती ब्याज दर पर ऋण देना ‘फ्रिंज बेनिफिट’ और ‘अनुलाभ’ के रूप में माना जाना चाहिए। इसके अनुसार, ‘अनुलाभ’ एक वेतन के बदले लाभ का प्रकार होता है जो कर्मचारी द्वारा धारित पद से जुड़ा होता है और जो रोज़गार से संबंधित होता है। यह रोजगार के कारण दिया गया लाभ होता है जो अन्यथा उपलब्ध नहीं होता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि जब कोई बैंक कर्मचारी ब्याज-मुक्त या कम-ब्याज दर पर ऋण लेता है, तो उसे उसके लाभ पर कर लगाना चाहिए। इसे ‘अनुलाभ’ के रूप में माना जाना चाहिए। यह एक प्रकार की बोनस होती है, जो उसे मिलती है क्योंकि उसने अपने कर्म से इसे प्राप्त किया। उन्होंने इसे अतिरिक्त लाभ के रूप में देखा। इस प्रकार की लाभ को तय करने के लिए वे बैंकों की ब्याज दरों को मापदंड के रूप में मानते हैं। इस तरह की लाभ के लिए कर लगाने का कानून अधीनस्थ कानून अधिनियम की धारा 17(2)(viii) के तहत है।
उन्होंने कहा कि धारा 17(2)(viii) स्वयं, और नियम 3(7)(i) का अधिनियमन अत्यधिक प्रतिनिधिमंडल का मामला नहीं है और अनुमेय प्रतिनिधिमंडल के मापदंडों के भीतर आता है। यह फैसला देर से हुआ है, इससे नियामक अधिकारी अनुलाभ के लिए कर लगाने के अधिकार से वंचित हो रहे थे।
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