India News Delhi (इंडिया न्यूज़),Delhi Jal Board case: प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने शनिवार (30 जनवरी) को दिल्ली जल बोर्ड केस में पहली चार्जशीट दाखिल की है। इसमें एक कंपनी और 4 लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि दिल्ली जल बोर्ड ने ठेका देने में भ्रष्टाचार किया। घूस की रकम आम आदमी पार्टी (AAP) को इलेक्शन फंड के तौर पर दी गई।
ED ने इन्हें बनाया आरोपी
बता दें, दिल्ली जल बोर्ड केस में प्रवर्तन निदेशालय की यह पहली चार्जशीट है। इसे दिल्ली की स्पेशल प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) कोर्ट में पेश किया गया। चार्जशीट में जल बोर्ड के पूर्व इंजीनियर जगदीश कुमार अरोड़ा, कॉन्ट्रेक्टर अनिल कुमार अग्रवाल, NBCC इंडिया लिमिटेड कंपनी के पूर्व जनरल मैनेजर डीके मित्तल, NKG इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और तेजिंदर सिंह को आरोपी बनाया गया है।
केजरीवाल को भेजा था नोटिस, PA के घर हुई थी छापेमारी
ईडी ने इस मामले में दिल्ली सीएम केजरीवाल को भी पूछताछ के लिए नोटिस भेजा था, हालाँकि वो नहीं पहुंचे। वहीँ, केंद्रीय एजेंसी ने जल बोर्ड केस में केजरीवाल के PA वैभव कुमार, आप के राज्यसभा सांसद एनडी गुप्ता, दिल्ली जल बोर्ड के पूर्व सदस्य शलभ कुमार, चार्टर्ड अकाउंटेंट पंकज मंडल और कुछ अन्य लोगों के घर भी छापेमारी की थी।
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क्या है दिल्ली जल बोर्ड घोटाला ?
दिल्ली की एंटी करप्शन ब्रांच को मिली शिकायत के मुताबिक, दिल्ली जल बोर्ड ने अपने उपभोक्ताओं के बिल कलेक्शन की जिम्मेदारी कॉरपोरेशन बैंक को दी थी। इसके लिए साल 2012 में बैंक से 3 साल के लिए अनुबंध किया गया था. बाद में इसे वर्ष 2016, फिर 2017 और 2019 तक बढ़ा दिया गया। उपभोक्ताओं के नकद और चेक के लिए जल बोर्ड के स्थानीय कार्यालयों में ई-कियोस्क मशीनें लगाई गईं ताकि उपभोक्ता अपने पानी के बिल का भुगतान जमा कर सकें।
एसीबी सूत्रों के मुताबिक, कॉर्पोरेशन बैंक ने कैश और चेक कलेक्शन की जिम्मेदारी मेसर्स फ्रेशपे आईटी सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड को सौंपी थी। उसे यह पैसा सीधे दिल्ली जल बोर्ड के खाते में जमा करना था, लेकिन इस कंपनी ने चेक और कैश इकट्ठा कर लिया। ई-कियोस्क मशीन लगाकर फेडरल बैंक के खाते में जमा करा दिया। फेडरल बैंक के जिस खाते में मेसर्स फ्रेशपे आईटी सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड ने पैसे जमा किए वह मेसर्स ऑरम ई-पेमेंट प्राइवेट लिमिटेड के नाम पर था।
इसके बाद जिस फेडरल बैंक के खाते में पैसा जमा किया गया था, वहां से आरटीजीएस के माध्यम से अलग-अलग तारीखों में पैसा ट्रांसफर किया गया, लेकिन पैसा जल बोर्ड के खाते में ट्रांसफर करने के बजाय कहीं और ट्रांसफर कर दिया गया। साल 2019 में दिल्ली जल बोर्ड को इस फर्जीवाड़े का पता चला। लेकिन जल बोर्ड ने अपना पैसा वसूलने के बजाय कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू कर दिया। चेक और नकद संग्रहण का शुल्क 5 रुपये प्रति बिल से बढ़ाकर 6 रुपये कर दिया गया।
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