India News(इंडिया न्यूज़), Narasimha Rao: नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री कांग्रेस नेता नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने का ऐलान किया है। देश की अर्थव्यवस्था को संकट से निकालकर पटरी पर लाने के लिए खुद पीएम मोदी भी कई बार राव की तारीफ कर चुके हैं। राव ने देश की अर्थव्यवस्था को खोलकर आर्थिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया था। हालांकि, सोनिया गांधी के कांग्रेस की कमान संभालने के बाद पार्टी ने कभी राव की उपलब्धियों का जिक्र करना भी उचित नहीं समझा। कुछ ऐसी घटनाएं भी हुई हैं जिन पर कांग्रेस नेतृत्व और इस सबसे बड़ी पार्टी की आलोचना हुई है। राव के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस कार्यालय में नहीं आने दिया गया। यह भी कुछ ऐसी ही घटना थी।
प्रधानमंत्री रहते हुए राव ने सोनिया गांधी की नाराजगी मोल ले ली थी। पार्टी ने उन्हें अकेला छोड़ दिया था। एक समय ऐसा आया जब वह वकीलों की फीस चुकाने के लिए हैदराबाद में अपना घर बेचने के बारे में सोचने लगे। राव को सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनाया था। पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपनी किताब वन लाइफ इज़ नॉट इनफ़ में लिखा है कि शुरुआत में राव के साथ उनके रिश्ते मधुर नहीं थे लेकिन दिसंबर 1994 तक ग़लतफ़हमियाँ दूर हो गईं। इस बीच राव के बुलावे पर नटवर सिंह उनके आवास 5 रेसकोर्स पहुंचे थे। राव उत्तेजित और बेचैन थे। उनकी शिकायत थी कि सोनिया के कुछ सलाहकार उनकी बात सुन रहे हैं।
राव ने कहा कि उन्होंने सोनिया को संतुष्ट रखने के लिए हर संभव प्रयास किया है। उनकी सभी इच्छाएँ और आवश्यकताएँ तुरंत पूरी हो गईं। फिर भी उनका रवैया दुर्भावनापूर्ण है। इससे मेरी सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है।’ अगर वह चाहती है कि मैं इस्तीफा दे दूं, तो उसे बस पूछना होगा।
23 दिसंबर 2004 को राव ने अंतिम सांस ली। गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने राव के छोटे बेटे प्रभाकर राव को हैदराबाद में अंतिम संस्कार करने की सलाह दी। प्रभाकर ने अपने पिता के दिल्ली से तीस साल से अधिक पुराने जुड़ाव का जिक्र किया। पाटिल ने गुस्से में कहा कि कोई नहीं आएगा। गुलाम नबी आजाद भी यही सुझाव लेकर आये। शाम को उनके अंतिम दर्शन के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ सोनिया गांधी और प्रणब मुखर्जी पहुंचे। मनमोहन सिंह ने प्रभाकर राव से दाह संस्कार की जगह के बारे में पूछा। प्रभाकर ने परिवार की इच्छा दोहराते हुए कहा कि उनके पिता की कर्मभूमि दिल्ली है।मनमोहन सिंह ने सिर हिलाया।
अहमद पटेल ने वहां मौजूद राव परिवार के करीबी पत्रकार संजय बारू से कहा, ”शव को हैदराबाद ले जाया जाना चाहिए। क्या आप उन्हें मना सकते हैं? तमाम कांग्रेस नेताओं और मंत्रियों के आग्रह और दिल्ली में नरसिम्हा राव का स्मारक बनाने के आश्वासन के बाद राव का परिवार मान गया और हैदराबाद में अंतिम संस्कार करने को तैयार हो गया। अगले दिन तिरंगे में लिपटे नरसिम्हा राव के पार्थिव शरीर को एक गन कैरिज में रखा गया। तब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस.चंद्रशेखर रेड्डी ने शव को परिवार के लिए हैदराबाद पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई।
हैदराबाद ले जाने से पहले राव का पार्थिव शरीर 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय पहुंचा। पार्टी अध्यक्ष रहे नेताओं के शवों को कांग्रेसियों द्वारा श्रद्धांजलि देने के लिए मुख्यालय के अंदर ले जाने की परंपरा रही है। लेकिन परिवार की जिद और 30 मिनट के असहज इंतजार के बावजूद गेट नहीं खुला। हैदराबाद में हुसैन सागर झील के किनारे चार एकड़ क्षेत्र में अंतिम संस्कार की तैयारी की गई। हैदराबाद के एयरपोर्ट पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री और पूरी कैबिनेट मौजूद रही। अंतिम संस्कार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कई मंत्रियों के साथ-साथ विपक्ष के तमाम दिग्गज शामिल हुए।
इस मौके पर सोनिया गांधी की गैरमौजूदगी ने लोगों का ध्यान खींचा। उस रात, टीवी चैनलों ने राव के आधे जले हुए शरीर के दृश्य दिखाए, जिसमें उनका सिर दिखाई दे रहा था, और आवारा कुत्ते चिता पर झपट रहे थे। शव पूरी तरह से जल चुका था लेकिन राख के बीच से उसकी बाहरी रूपरेखा दिखाई दे रही थी। ये बात बस लोगों के मन में थी। उन्हें पता था कि शव को जबरदस्ती हैदराबाद लाया गया है। शव को कांग्रेस मुख्यालय के अंदर ले जाने की इजाजत नहीं दी गई। दरअसल, आधे जले शव की कहानी राव के अपमान पर लोगों के गुस्से की अभिव्यक्ति थी।
वो नरसिम्हा राव जिन्होंने देश को आर्थिक बदहाली से बाहर निकाला। देश में आर्थिक उदारीकरण का निर्णय लिया। कांग्रेस इसका जिक्र तक नहीं करती। जब राव ने ये फैसला लिया तो उन्हें पार्टी में काफी विरोध का सामना करना पड़ा। लेकिन अपने पीएम के प्रति ऐसी उदासीनता दिखाकर कांग्रेस ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। कांग्रेस ने राव को कभी वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे हकदार थे।
2004 में जब राव की मृत्यु हुई तो उनका अंतिम संस्कार भी दिल्ली में नहीं होने दिया गया। देश के पूर्व पीएम और आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम राव के पार्थिव शरीर को दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय तक भी नहीं पहुंचने दिया गया। उनका पार्थिव शरीर 24 अकबर रोड के बाहर खड़ा रहा लेकिन उन्हें पार्टी कार्यालय में रखने की इजाजत नहीं दी गई। बाद में उनका अंतिम संस्कार आंध्र प्रदेश में किया गया।